धरती पर इंसान के आगमन का निश्चित इतिहास वैज्ञानिकों को मालूम नहीं। फिर भी उन्होंने ऐसे मानवीय ढाँचे और कंकाल खोजे हैं, जिनके बारे में उनका विश्वास है कि वह दस हज़ार साल ईसा पूर्व के समय से संबंध रखते हैं। इसलिए इस मामले में बाइबल के व्याख्यान को वैज्ञानिक स्वीकार नहीं करते। बाइबल की पुस्तक ‘उत्पत्ति’ (Genesis) में मानवीय पीढ़ियों की जो तारीख़ें दी गई हैं, उसके अनुसार धरती पर आदम का आगमन मसीह से तीन हज़ार सात सौ साल पहले हुआ। यहाँ तक कि 1975 के यहूदी कैलेंडर में हिसाब लगाकर बताया गया था कि धरती पर इंसान का सर्वप्रथम आगमन 5,736 साल पहले हुआ। आधुनिक विज्ञान के अनुसार यह हिसाब पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
ईसाइयों ने इस प्रकार धरती पर पूरी मानवीय आयु को बाइबल के अनुसार केवल कुछ हज़ार वर्षों में समेट दिया था। इस हिसाब के वैज्ञानिक तौर पर ग़लत होने की बात 18वीं सदी में जेम्स हट्टन की खोज से सामने आई, जो भू-विज्ञान (Geology) का माहिर था। उसने अपनी सारी उम्र चट्टानों और धरती की बनावट का अध्ययन करने में लगा दी। उसने सिद्ध किया कि पृथ्वी को अपने वर्तमान स्वरूप में विकसित होने में लाखों वर्ष का समय लगा।
उसके बाद 19वीं सदी में चार्ल्स लयेल के वैज्ञानिक अध्ययन और जाँच-प्रयोग के आधार पर प्रस्तुत विचारों ने हट्टन के सिद्धांत की पुष्टि की। चार्ल्स लयेल की प्रसिद्ध पुस्तक ‘प्रिंसिपल्स ऑफ़ जियोलॉजी’, जिसका पहला भाग 1830 ईo में प्रकाशित हुआ‚ वह बड़ी हद तक बाइबल के हिसाबी पैमाने को गंभीर चर्चा और बहस से हटाने का कारण बनी। सच्चाई यह है कि यह चार्ल्स लयेल की पुस्तकों का परिणाम था कि पूरी दुनिया को इस बात पर विश्वास हो गया कि बाइबल की व्याख्या ग़लत हो सकती है। जबकि इससे पहले यह सोच और अनुमान से परे था कि बाइबल के बयान को ग़लत समझा जाए।
“Indeed, Lyell’s books were largely responsible for convincing the world at large that the Bible could be wrong, at any rate in some respects— a hitherto unthinkable thought.”
[Fred Hoyle, The Intelligent Universe, p.29]
बाइबल की अवधारणाओं के बारे में इस तरह का दृष्टिकोण यूरोप के ज्ञान-विज्ञान की तरक़्क़ी में रुकावट बन गया। जिस व्यक्ति ने भी चर्च की मंज़ूरी से अलग विचारधारा और सोच पेश करने की हिम्मत की‚ उसे धर्म के विरुद्ध या धर्मद्रोही बताकर सज़ा के योग्य क़रार दे दिया गया, लेकिन इस्लाम में इस प्रकार की असत्य विचारधारा को कभी भी लोकप्रियता प्राप्त नहीं हुई। यही कारण है कि स्पेन में जब इस्लाम के प्रभाव के अधीन विज्ञान संबंधी खोज और अध्ययन का काम शुरू हुआ तो वहाँ उन्हें किसी भी तरह के धार्मिक विरोध का सामना नहीं करना पड़ा।