फ़ैमिली कल्चर का नुक़सान

वर्तमान समय में विशेष रूप से और सामान्य रूप से पूर्वी दुनिया के लोगों में एक ही संस्कृति प्रचलित है और वह फ़ैमिली कल्चर है। इसका मतलब है पैसा कमाना और परिवार की ज़रूरतों को पूरा करना। लोगों को सिर्फ़ यही एक मॉडल पता है, इसके सिवा किसी और मॉडल का उन्हें ज्ञान नहीं है।

इस फ़ैमिली कल्चर का सबसे बड़ा नुक़सान यह है कि यह वास्तव में परिवार को मूर्ख बनाना (befooling of family) बन चुका है। इसका नतीजा यह हुआ है कि लोगों की सोच का दायरा बहुत सीमित हो गया है। उनका दिमाग़ केवल अपनी भौतिक ज़रूरतों के सीमित दायरे में काम करता है। वे यह ज़रूरत नहीं समझते कि उन्हें इस सीमित दायरे से बाहर भी सोचना चाहिए।

उनके यहाँ किताबों का अध्ययन करने का माहौल नहीं होता। उनके यहाँ विचारों के गंभीर आदान-प्रदान (serious discussion) का रिवाज नहीं होता। उनके पास यह संस्कृति नहीं होती कि वे रिश्तेदारों के अलावा अन्य लोगों से मिलें और उनसे सीखने और लाभ उठाने की कोशिश करें। वे अपने घर से बाहर निकलते हैं तो या तो नौकरी के लिए, मनोरंजन के लिए या फिर ख़रीदारी के लिए। इन चीज़ों के अलावा उनके पास मानसिक विकास (intellectual development) का कोई विचार नहीं है।

इस फ़ैमिली कल्चर का नुक़सान यह है कि लोग भले ही बाहरी तौर पर भौतिक रूप से आरामदायक जीवन जी रहे हों, लेकिन असल में वे बौद्धिक पिछड़ेपन (intellectual backwardness) के शिकार हैं। यदि आप उनसे किसी गंभीर विषय पर बात करेंगे, तो तुरंत पता चल जाएगा कि उनके अंदर कोई वैज्ञानिक सोच (scientific temper) नहीं है, वे दुनिया की हक़ीक़तों से अंजान हैं और जीवन के बड़े मसलों पर उनकी कोई राय नहीं है। देखने में वे इंसान लगेंगे, लेकिन असल में वे सिर्फ़ एक सजे-धजे जानवर (well-dressed animal) की तरह होंगे। पारिवारिक जीवन को इस तरह बनाया जाना चाहिए कि यह लोगों के बौद्धिक विकास (intellectual development) में मदद करे, न कि उनके मानसिक विकास के लिए एक स्थायी रुकावट बन जाए।

Maulana Wahiduddin Khan
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