नैतिकता की विरासत

 पैग़म्बर मोहम्मद ने कहा है—

“किसी पिता की ओर से अपनी संतान के लिए सबसे अच्छी विरासत यह है कि वह उसे अच्छे अदब (संस्कार) सिखाए।”

(अल-मज्म अल-अवसत लिल-तबरानी, हदीस न० 3658)

अरबी भाषा में ‘अदब’ का मतलब अच्छा आचरण होता है। यह एक सच्चाई है कि पहले व्यक्ति के भीतर अच्छी सोच आती है, फिर उसके भीतर अच्छा आचरण विकसित होता है। अच्छी सोच अच्छे आचरण की नींव होती है। इस दृष्टि से हदीस का मतलब यह है कि व्यक्ति अपनी संतानों में सही सोच (right thinking) को बढ़ावा दे। जिस व्यक्ति की सोच सही हो, उसका हर व्यवहार सही होगा। ऐसे व्यक्ति की सोच सही होगी, उसका आचरण सही होगा। उसका लेन-देन (dealings) सही होगा और उसकी योजनाएँ भी सही होंगी। संक्षेप में कहें तो व्यक्ति पूरी तरह से सकारात्मक सोच का धनी होगा और नकारात्मक सोच से बिलकुल ख़ाली होगा।

जिस व्यक्ति में यह अच्छे संस्कार होंगे, वह अपने हर मामले में एक बेहतर इंसान साबित होगा। ऐसा व्यक्ति, चाहे वह घर के अंदर हो या बाहर, अपने लोगों से व्यवहार करे या अंजान लोगों से—हर स्थिति में वह सही व्यवहार पर टिका रहेगा। उसकी सही सोच एक ऐसा कारक (factor) बनेगी, जो हर मौक़े पर उसे भटकने से बचाएगी। ऐसा व्यक्ति गंभीर और ज़िम्मेदार होगा। ऐसे व्यक्ति का चरित्र वह होगा जिसे ‘प्रेडिक्टेबल कैरेक्टर— पूर्वानुमेय चरित्र’ कहा जाता है। निस्संदेह, यह किसी व्यक्ति के लिए उसके माता-पिता की सबसे मूल्यवान विरासत है।

Maulana Wahiduddin Khan
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