दिखावटी ख़रीदारी
एक सज्जन मुझे अपने घर ले गए। मैंने देखा कि उनका घर विभिन्न क़िस्म के सामान से भरा हुआ था। पूरा घर एक डिपार्टमेंटल स्टोर जैसा लग रहा था। मैंने पूछा कि आपके घर में इतना सामान क्यों है? उन्होंने कहा, “जब मैं बाज़ार जाता हूँ और वहाँ कुछ देखता हूँ, जो मुझे पसंद आता है, तो मैं उसे ख़रीद लेता हूँ। यह देखने की ख़रीदारी है। अक्सर लोगों का यही हाल है कि वे चीज़ों को देखकर ख़रीदते हैं, चाहे वे उनके उपयोग में आएँ या नहीं।”
ख़रीदारी दो प्रकार की होती है—दिखावटी ख़रीदारी और ज़रूरत की ख़रीदारी। दिखावटी ख़रीदारी वह है, जो देखकर की जाती है। इसके विपरीत, ज़रूरत की ख़रीदारी यह है कि जब आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो, तो आप उसे लेने के इरादे से घर से निकलें और जहाँ वह मिलती हो, वहाँ जाकर उसे ख़रीद लें। दिखावटी ख़रीदारी, दूसरे शब्दों में उद्देश्यहीन ख़रीदारी है। यह अपने समय और धन को बर्बाद करने के समान है। यह वही चीज़ है जिसे क़ुरआन में धन की बर्बादी (अल-इसरा, 17:26) कहा गया है यानी बेवजह धन बर्बाद करना।। ज़रूरत की ख़रीदारी एक ज़िम्मेदाराना काम है, जबकि दिखावटी ख़रीदारी एक ग़ैर-ज़िम्मेदाराना काम।। किसी मर्द या औरत के पास जो संपत्ति है, वह ईश्वर की दी हुई है, वह ईश्वर की अमानत है।
जो पुरुष या स्त्री ईश्वर की दी हुई संपत्ति को फिज़ूल-ख़र्च करते हैं, वे ईश्वर की अमानत में ख़यानत कर रहे होते हैं। वे ऐसा काम करते हैं, जिसके लिए परलोक में उनकी कड़ी सज़ा होगी। संपत्ति को जायज़ ज़रूरत पर ख़र्च करना पुण्य का काम है। इसके विपरीत, यदि धन को बेवजह ख़र्च किया जाए तो वह ख़र्च करने वाले के लिए पाप बन जाता है। धन को ख़र्च करने में इंसान को बहुत सतर्क रहना चाहिए।