औलाद की मोहब्बत में हद से बढ़ जाना

पैग़म्बर की एक हदीस में बताया गया है कि क़यामत के दिन सबसे अधिक शर्मिंदगी उसे होगी, जो दूसरे की दुनिया के लिए अपनी आख़िरत (मौत के बाद आने वाली दुनिया) बेच देगा।

 यह हदीस आज के ज़माने में सबसे अधिक उन लोगों पर लागू होती है, जिनके बच्चे हैं। आज कल बच्चों वाले लोग अपने बच्चों को ही अपनी सबसे बड़ी चिंता(concern) मान बैठे हैं। हर किसी की यही हालत है कि वह अपने बच्चों के लिए जितना हो सके, दुनिया की दौलत कमाने में लगा हुआ है और अपनी आख़िरत के लिए कोई असली काम करने का उसके पास समय ही नहीं है।

आज के ज़माने में हर आदमी इस सच्चाई को भूल चुका है कि उसकी औलाद उसके लिए बस एक इम्तिहान है ( क़ुरान:अल-अनफ़ाल, 8:28)। औलाद उसे इसलिए नहीं मिली कि वह सिर्फ़ अपने बच्चों को ख़ुश करने में लगा रहे या अपनी सारी मेहनत उनकी दुनिया की कामयाबी के लिए ख़र्च कर दे।

आज कल बहुत से लोग ऐसे हैं, जो ऊपर से तो धार्मिक लगते हैं और औपचारिक रूप से (formal) नमाज़-रोज़े की पाबंदी भी करते हैं, लेकिन असल में वे अपना सारा समय और अपनी सबसे बड़ी मेहनत केवल दुनिया कमाने में ख़र्च कर रहे हैं। सिर्फ़ इसलिए कि जब वे मरें, तो अपने बच्चों के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा दुनिया की दौलत छोड़कर जाएँ, लेकिन ऐसे लोग ख़ुद को धोखा दे रहे हैं। उनके पास ईश्वर को प्रस्तुत करने के लिए सिर्फ़ कुछ बाहरी रस्में हैं और जहाँ तक असली ज़िंदगी का सवाल है, उसे उन्होंने पूरी तरह से अपनी औलाद के लिए समर्पित कर दिया है। यह ईश्वर की आराधना नहीं है, बल्कि यह औलाद की आराधना है और यह सच्चाई है कि औलाद की आराधना किसी को ईश्वर की अराधना का पुण्य नहीं दिला सकती। ईश्वर को समर्पण ज़िंदगी का एक हिस्सा नहीं होनी चाहिए, बल्कि सच्चा समर्पण वह है, जो इंसान की पूरी ज़िंदगी को अपने घेरे में लिए हो।

Maulana Wahiduddin Khan
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