माँ की भूमिका
मुल्ला अब्दुल नबी (मृत्यु 1583 ई०) सम्राट अकबर के समय के महान विद्वानों में से एक थे। उनके द्वारा बनवाई गई एक मस्जिद आज भी नई दिल्ली में बहादुर शाह ज़फ़र मार्ग के किनारे मौजूद है, जिसे अब्दुल नबी की मस्जिद के नाम से जाना जाता है। मुल्ला अब्दुल नबी सम्राट अकबर के गुरु थे। इस कारण वे अकबर के दरबार में बिना किसी रोक-टोक के आते-जाते थे।
अकबर ने मुल्ला अब्दुल नबी को सरकार में ‘सद्र-ए-सुदूर’ के पद पर नियुक्त किया। अकबर से उनके विशेष संबंधों के कारण मुल्ला अब्दुल नबी को उस युग में बहुत ही सम्मानजनक पद मिला। मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी के अनुसार, किसी भी राज्य में शाही को वह महत्त्व नहीं मिला, जो मुल्ला अब्दुल नबी के समय में मिला था:
“इस समय किसी भी राज्य में ऐसा कोई प्रमुख नहीं चुना गया।”
अकबर की मुल्ला अब्दुल नबी के प्रति इतनी आस्था थी कि अकबर उनके जूते सीधा किया करता था। वह उनके पास जाकर पैग़म्बर मोहम्मद की कथनी-करनी सुनता था। मुल्ला अब्दुल नबी की संगत से उसकी धार्मिकता इस हद तक पहुँच गई थी कि वह मस्जिद में ख़ुद अज़ान देता था और पुण्य की ख़ातिर कभी-कभी मस्जिद में झाड़ू भी लगाता था।
एक बार ऐसा हुआ कि अकबर के जन्मदिन का जश्न मनाया जा रहा था। अकबर ने अपनी प्रसिद्ध नीति के अनुसार उस दिन जो कपड़ा पहना था, वह भगवा रंग का था। मुल्ला अब्दुल नबी ने इसे देखा और इसे हिंदू रंग समझकर ग़ुस्से में आ गए और भरे दरबार में अकबर को अपनी लाठी से मार दिया। अकबर को यह बात नागवार गुज़री, लेकिन वह चुपचाप उठकर महल के अंदर चला गया। महल में उसकी माँ, मरियम मकानी मौजूद थीं। उसने अपनी माँ से कहा, “आज मुल्ला अब्दुल नबी ने भरे दरबार में मुझे मारा। अगर वे मुझे अकेले में सलाह देते, तो इसमें कोई बुराई नहीं होती।”
अकबर की माँ मरियम मकानी एक बुद्धिमान और विद्वान महिला थीं। उन्होंने अकबर की बात सुनकर कहा, “बेटे, दिल पर मैल मत लो, यह तुम्हारे लिए परलोक में मुक्ति का साधन है। क़यामत तक चर्चा रहेगी कि एक बेबस मुल्ला ने बादशाह के साथ यह हरकत की और समझदार बादशाह ने धैर्य से काम लिया।” (मास्र अल-अमरा, खंड II, पृष्ठ 560)। इससे यह पता चलता है कि बच्चों की मानसिकता बनाने में माँ की भूमिका बेहद अहम होती है।