आराम से रहें बच्चों
जुलाई 1995 में मेरा मुरादाबाद का सफ़र था।। वहाँ एक सज्जन ने बताया कि जिन मुसलमानों के पास पैसा है, अगर उनसे पूछा जाए कि आप इतना पैसा क्यों जमा कर रहे हैं, तो उनका जवाब होता है, “ताकि बच्चे आराम से रहें”। मैंने कहा कि जो लोग अपने बच्चों के आराम के लिए धन-दौलत इकट्ठा करते हैं, वे असल में अपने बच्चों के साथ समझदारी नहीं कर रहे हैं। अनुभव बताता है कि बिना मेहनत से मिली हुई दौलत इंसान के नैतिक आचरण को बिगाड़ देती है। यह उसमें सतहीपन और यहाँ तक कि आवारगी भी पैदा कर देती है। बच्चों के साथ सबसे बड़ी भलाई यह है कि उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई जाए और इसके बाद दूसरी ज़रूरत यह है कि उन्हें मेहनत के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया जाए।