परिवार का महत्त्व

परिवार महान इंसानियत की एक इकाई है। परिवार के भीतर सीमित दायरे में वे सभी स्थितियाँ होती हैं, जो इस विशाल इंसानियत में बड़े स्तर पर घटित होती हैं। इस दृष्टि से, परिवार हर व्यक्ति के लिए एक विद्यालय जैसा है। हर इंसान अपने परिवार के अंदर वे सभी चीज़ें सीख सकता है, जो दुनिया में सफ़ल जीवन जीने के लिए ज़रूरी हैं, लेकिन इसकी एक शर्त है कि व्यक्ति परिवारवाद का शिकार न हो। वह अपने परिवार को भी उसी नज़र से देखे, जैसे वह अन्य इंसानों को देखता है।

सच यह है कि दुनिया में जितने भी प्रकार के चरित्र होते हैं, वे सभी किसी व्यक्ति के अपने परिवार के सदस्यों में भी पाए जाते हैं। परिवार हर व्यक्ति के लिए पारंपरिक ‘जाम-ए-जमशेद’ (जादुई प्याला) की तरह है। परिवार के आईने में व्यक्ति हर तरह के नैतिकताओं का उदाहरण देख सकता है। इस तरह, हर व्यक्ति के लिए यह संभव है कि वह अपने परिवार और रिश्तेदारों को देखकर जीवन का अनुभव प्राप्त करे और अपने जीवन की यथार्थवादी ढंग से योजना बनाए।

लेकिन ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो इस नज़दीकी अवसर का लाभ उठाते हैं। इस कमी का कारण क्या है? इसका कारण केवल एक ही है और वह है लोगों में व्यक्तिपरक सोच (subjective thinking) की कमी। लोगों की स्थिति यह है कि वे अपने परिवार के सदस्यों के बारे में बहुत जल्दी पक्षपाती सोच का शिकार हो जाते हैं। उन्हें अपने घरवालों की ग़लतियाँ दिखाई नहीं देतीं। वे परिवार से बाहर के लोगों के बारे में असंवेदनशील तरीक़े से सोचते हैं और अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सहानुभूतिपूर्ण ढंग से। वे बाहर के लोगों को एक नज़र से देखते हैं और अपने परिवार के सदस्यों को दूसरी नज़र से। इस तरह, उनकी स्थिति यह हो जाती है कि वे न अपने लोगों की ज़िंदगी से कुछ सीखते हैं और न दूसरों की ज़िंदगी से कोई सबक़ लेते हैं।

Maulana Wahiduddin Khan
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