बेहतरीन गिरोह
तुम बेहतरीन गिरोह हो जिसको लोगों के वास्ते निकाला गया है। तुम भलाई का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो (आले- इमरान 110)।
क़ुरान की इस आयत में बेहतरीन गिरोह का मतलब सहाबियों का गिरोह है। यानी इस गिरोह को ख़ास तौर से निकाल कर मैदान में लाया गया है। यह उस रेगिस्तानी मन्सूबे की तरफ़ इशारा है, जिसके ज़रिए सहाबियों की वह अनोखी जमाअत तैयार की गई, जिसको प्रोफेसर डी. एस. मार्गोलेथ (1858-1940) ने हीरोओं की एक क़ौम (a nation of heroes) का नाम दिया है।
रसूल के साथी या सहाबी कौन थे? ये इस्माईल की संतान की नस्ल से ताल्लुक रखते थे। इस नस्ल के पूर्वज इस्माईल बिन इब्राहीम हैं। चार हज़ार साल पहले हज़रत इब्राहीम ने अपने छोटे बेटे इस्माईल और उनकी मां हाजरा को इराक़ से निकाला और उनको ले जाकर अरब के रेगिस्तान में छोड़ दिया।
उस वक़्त यह इलाक़ा एक दुर्गम और बंजर इलाक़ा था। वहां कोई इन्सानी आबादी न थी। यह पूरी तरह प्रकृति की एक दुनिया थी। रेगिस्तान और पहाड़, ज़मीन और आसमान, सूरज और चांद बस इस क़िस्म की चीज़ें थीं, जिनके बीच किसी शख़्स को अपने रात और दिन को गुज़ारना था। यहां शहरियत और सभ्यता का कोई निशान न था। चारों तरफ़ सिर्फ़ प्रकृति की डरावनी निशानियां फैली हुई दिखाई देती थीं। फिर यहां आराम और ऐश नाम की कोई चीज़ मौजूद न थी। यहां ज़िन्दगी सीधे तोर पर चुनौती थी। आदमी मजबूर था कि लगातार चुनौतियों का सामना करते हुए वह इस कठिन माहौल में ज़िन्दा रहने की कोशिश करे।
सभ्यता की ख़राबियों से दूर इस सादा माहौल में एक नस्ल बनना शुरू हुई। ये ऐसे लोग थे, जिनके हालात ने उन्हें मानवीय औपचारिकताओं से दूर कर रखा था। वे बनावटी नैतिकता से अपरिचित थे। वे एक ही मार्गदशन को जानते थे और वह प्रकृति का मार्गदर्शन था। प्रकृति बेशक बेहतरीन शिक्षक है, और रेगिस्तान की यह नस्ल इसी शिक्षक के तहत तैयार हुई।
सूरह आले-इमरान की उपरोक्त आयत में बेहतरीन उम्मत की दो विशेषताएं बताई गई हैं। एक यह कि वे ‘मारूफ़’ का हुक्म देने वाले और ‘मुन्कर’ से रोकने वाले हैं। यानी असत्य को बर्दाश्त न करना और सत्य से कम किसी चीज़ पर राज़ी न होना, यह उनका स्थायी स्वभाव है। वे उन लोगों में से नहीं जो अपने आसपास से ग़ैर ज़िम्मेदार रह कर ज़िन्दगी गुज़ारते हैं या जिनका रवैया केवल निजी स्वार्थ से जुड़ा होता है। बल्कि वे पूर्ण रूप से सत्यवादी और हक़पसन्द हैं। हक़ और नाहक की बहस में न पड़ना, या नाहक से समझौता करके ज़िन्दा रहना उनके लिए संभव नहीं।
उनकी दूसरी विशेषता यह बताई गई है कि वे अल्लाह पर ईमान रखते हैं। दूसरे शब्दों में यह कि उन्होंने ख़ुदा की पहचान या ‘बोध’ को पाया है। वे ऊपरी सतह पर जीने वाले लोग नहीं हैं। उन्होंने सर्वोच्च सच को खोजा है। उनकी चेतना पाए हुए इन्सान की चेतना है। उन्होंने सृष्टि के पीछे सृष्टा का साक्षात्कार किया है।
ये दोनों गुण बेहद दुर्लभ गुण हैं। सत्य और बोध को उपलब्ध वही लोग हो सकते हैं जो बेहद संजीदा हों। जो उसूल की बुनियाद पर राय क़ायम करते हों न कि इच्छाओं के आधार पर। जो भौतिक तथ्यों के बजाए आत्मिक तथ्यों को अपने ध्यान का केन्द्र बनाएं हुए हों। जो स्वार्थ के बजाए सच्चाई के लिए जीने वाले हों। जो दबाव के बिना अपने स्वतंत्र फ़ैसले के तहत सही रवैया इख़्तियार कर लें। जो दलील से चुप हो जाएं, बगैर इसके कि उनको चुप करने के लिए कोई ताक़त इस्तेमाल की गई हो।
इस दुनिया में सबसे बड़ा बोल सत्य को स्वीकार करना है और इस दुनिया में सबसे बड़ा अमल सत्य से सामंजस्य स्थापित करना है। और रसूल के सहाबी बेशक उन दुर्लभ इन्सानों में से थे जो इन्सानियत के इस पैमाने पर आख़िरी हद तक खरे उतरे।
यह वह पूर्ण इन्सान है, जिसकी इन्सानियत पूरी तरह सुरक्षित होती है, जो अपने रचनात्मक स्वभाव पर क़ायम रहता है। यही वह ज़िन्दा प्रकृति वाला इन्सान है जो अरब के रेगिस्तानी माहौल में ढाई हज़ार साल तक चली प्रक्रिया में तैयार किया गया। और सहाबियों का गिरोह वह चुना हुआ इन्सानी गिरोह है, जिसको इस ख़ास इन्सानी नस्ल से चुन कर निकाला गया।
सहाबा वे लोग थे जो दूसरों की भलाई के लिए जिए, जिनकी सारी कोशिश यह थी कि वे लोगों को जहन्नम से बचा कर जन्नत में पहुंचा दें। इसीलिए वे बेहतरीन गिरोह ठहराए गए।
दाई लोगों का ख़ैरख्वाह होता है, चाहे वे सरकशी करें
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने 20 दिन से ज़्यादा मुद्दत तक तायफ़ का मुहासिरा (घेराबंदी) किया। जब मुसलमानों के लिए वह मुश्किल हो गया तो आपने वापसी का हुक्म दिया। एक शख़्स ने आपसे कहाः ऐ ख़ुदा के रसूल, सक़ीफ़ (क़बीले) को बद्दुआ कीजिए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दोनों हाथ उठाए और कहाः ऐ अल्लाह सक़ीफ़ को हिदायत दे और उनको मुसलमान कर के वापस ला। इसी तरह आप से कहा गया कि क़बीला दौस सरकश और मुन्कर (निरंकुश और इंकार करने वाला) हो गया है। उसके ख़िलाफ़ बददुआ कीजिए। आपने फ़रमायाः ऐ अल्लाह, क़बीला दौस को हिदायत दे और उनको मोमिन बना कर ला।