स्वर्ग और नर्क
स्वर्ग ईश्वर के इनाम की जगह है और नर्क वह जगह है, जहाँ उन लोगों को डाला जाएगा जिनके लिए ईश्वर की अदालत में सज़ा का फ़ैसला हुआ हो। इस दुनिया में हर तरह की नेमतें (वरदान, उपहार, blessings) हैं, लेकिन वे अधूरी और असंपूर्ण रूप में हैं। स्वर्ग वह जगह है, जहाँ ये सारी नेमतें अपनी पूर्ण और उत्तम अवस्था में होंगी। मौजूदा दुनिया एक अधूरी दुनिया है, जबकि स्वर्ग की दुनिया पूरी तरह से एक उत्कृष्ट दुनिया होगी। जो लोग इस दुनिया की परीक्षाओं में सफल होंगे, वे स्वर्ग की अनंत दुनिया में प्रवेश करेंगे, जहाँ उन्हें सिर्फ़ सुख और आनंद मिलेगा।
स्वर्ग में इंसान को भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ मानसिक शांति और दिली सुकून भी पूरी तरह से मिलेगा। वहाँ भौतिक सुख-सुविधाओं की भरपूर व्यवस्था होगी और उन सभी समस्याओं को समाप्त कर दिया जाएगा, जो इस दुनिया में चिंता और परेशानी का कारण बनती हैं, जैसे: बुढ़ापा, बीमारी, हादसे, मौत आदि।
हर इंसान स्वाभाविक रूप से एक आदर्श दुनिया की तलाश में रहता है। हर व्यक्ति अपने सपनों में एक बेहतरीन दुनिया की कल्पना करता है। यह दुनिया इस जीवन में किसी को नहीं मिलती। मौत के बाद यह आदर्श दुनिया उन सौभाग्यशाली लोगों को मिलेगी जिन्होंने अपनी मौत से पहले की ज़िंदगी में इसके योग्य बनकर दिखाया हो।
नर्क का मामला इसके ठीक विपरीत है। स्वर्ग अगर हर तरह के सुख की जगह है, तो नर्क हर तरह की पीड़ा की जगह है। स्वर्ग अगर ब्रह्मांड का फूल है, तो नर्क इस ब्रह्मांड का काँटा है। जो लोग इस दुनिया में ईश्वर की इच्छा को छोड़कर अपनी इच्छाओं पर चलते हैं, जो नैतिक सीमाओं को तोड़ते हैं और विद्रोही रवैया अपनाते हैं, जो न तो ईश्वर का हक़ अदा करते हैं और न इंसानों का, ऐसे लोग मौत के बाद नर्क में डाल दिए जाएँगे, ताकि वे अनंत काल तक अपनी बुरे कर्मों की सज़ा भुगतें। नर्क में उन लोगों को बचाने के लिए कोई मददगार नहीं होगा। उनके सभी मददगार उनका साथ छोड़ देंगे। वहाँ कोई नहीं होगा, जो ईश्वर के फ़ैसले को उन पर लागू होने से रोक सके।