पड़ोसी
पड़ोसी किसी व्यक्ति का सबसे निकटतम साथी होता है। घर के सदस्यों के बाद व्यक्ति का सामना सबसे पहले जिन लोगों से होता है, वे उसके पड़ोसी होते हैं। पड़ोसी को ख़ुश रखना और उसके साथ अच्छा संबंध बनाए रखना, ईश्वर-भक्त के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
पड़ोसी चाहे अपने धर्म का हो या किसी अन्य धर्म का, चाहे अपनी जाति का हो या किसी अन्य जाति का, वह हर स्थिति में सम्मान का पात्र है। हर हाल में उसका वह अधिकार दिया जाएगा, जो शरीयत और इंसानियत का तकाज़ा है।
हदीस में कहा गया है कि हज़रत मोहम्मद ने कहा, “ईश्वर की क़सम, वह मुसलमान नहीं है। ईश्वर की क़सम, वह मुसलमान नहीं है। ईश्वर की क़सम, वह मुसलमान नहीं है, जिसका पड़ोसी उसकी बुराइयों से सुरक्षित न हो।” इस हदीस के अनुसार, यदि कोई मुसलमान अपने पड़ोसी को परेशान करता है, ऐसा व्यवहार करता है जिससे उसके पड़ोसी को तकलीफ़ हो और वह पड़ोसी के लिए कष्ट का कारण बनता है, तो ऐसे मुसलमान का ईमान और इस्लाम संदिग्ध हो जाता है।
किसी व्यक्ति की इंसानियत और धार्मिक भावना की पहली कसौटी उसका पड़ोसी होता है। पड़ोसी इस बात का मापदंड है कि व्यक्ति में मानवीय संवेदना है या नहीं और वह इस्लामी आदेशों के प्रति संवेदनशील है या नहीं। यदि किसी व्यक्ति का पड़ोसी उससे ख़ुश है, तो यह माना जा सकता है कि वह व्यक्ति सही है और यदि उसका पड़ोसी उससे नाख़ुश है, तो यह इस बात का प्रमाण होगा कि वह व्यक्ति सही नहीं है।
पड़ोसी के संबंध में शरीयत के जो आदेश हैं, उनसे यह पता चलता है कि मुसलमान को चाहिए कि वह एकतरफ़ा रूप से अपने पड़ोसी का ख़्याल रखे। वह पड़ोसी के व्यवहार को अनदेखा करते हुए भी उसके साथ अच्छे बर्ताव की कोशिश करे। अच्छा पड़ोसी बनना व्यक्ति के अच्छे इंसान होने का प्रमाण है। ऐसे इंसान को ही ईश्वर अपनी कृपा में शामिल करेगा।