नैतिकता

नैतिकता का मतलब है आपसी व्यवहार। नैतिकता उस बर्ताव का नाम है, जो एक इंसान रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दूसरे इंसान के साथ करता है। इस नैतिकता का सिद्धांत क्या होना चाहिए? इसका सरल सिद्धांत यह है: तुम दूसरों के लिए वही चाहो, जो तुम अपने लिए चाहते हो। तुम दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो, जैसा तुम अपने लिए पसंद करते हो।

हर व्यक्ति जानता है कि वह मीठी बातों को पसंद करता है। इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि वह दूसरों से मीठे लहजे में बात करे। हर व्यक्ति यह चाहता है कि कोई उसकी राह में रुकावट न डाले। इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि वह दूसरों की राह में रुकावट न डाले। हर व्यक्ति यह चाहता है कि दूसरे लोग उसके साथ सहानुभूति और सहयोग का व्यवहार करें। इसलिए हर व्यक्ति को यह प्रयास करना चाहिए कि जब भी वह दूसरों से मिले, तो वह सहानुभूति और सहयोग से पेश आए।

नैतिकता का यह मापदंड अत्यंत सरल और स्वाभाविक है। यह इतना आसान है कि हर व्यक्ति इसे समझ सकता है, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़। यहाँ तक कि एक अंधा या विकलांग व्यक्ति भी आसानी से यह समझ सकता है कि कौन-सी चीज़ उसके लिए पसंदीदा है और कौन-सी नापसंद। हदीस में कहा गया है कि सबसे अच्छा व्यक्ति वह है, जिसका नैतिक आचरण सबसे अच्छा हो। इसके अनुसार, एक अच्छा इंसान बनना कोई रहस्यमय बात नहीं है। इसका सरल फ़ॉर्मूला यह है कि व्यक्ति ख़ुद को दोहरे मापदंड से बचाए। ऐसा करने के बाद वह ख़ुद-ब-ख़ुद उच्च नैतिक गुणों का मालिक बन जाएगा।

इस हदीस ने इंसानी नैतिकता का ऐसा मापदंड दिया है, जिसे कोई भी व्यक्ति आसानी से समझ सकता है। इस तरह इस्लाम ने हर व्यक्ति को उसके अपने अनुभव की रोशनी में यह बता दिया है कि उसे दूसरों से कैसा व्यवहार करना चाहिए और कैसा नहीं करना चाहिए।

Maulana Wahiduddin Khan
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