सच बोलना

मुसलमान एक सच्चा इंसान होता है। वह हमेशा सच बोलता है। वह हर मामले में वही बात कहता है, जो वास्तव में सही होती है। मुसलमान यह सहन नहीं कर सकता कि वह झूठ बोले या सच को छुपाए। सच बोलने का मतलब यह है कि इंसान के ज्ञान और उसके बोले गए शब्दों में विरोधाभास न हो। वह जो जानता है, वही बोले और जो बोलता है, वह वही हो, जो उसके ज्ञान में है। इसके विपरीत, झूठ यह है कि इंसान का ज्ञान उसे एक बात बताता हो, लेकिन वह अपनी ज़बान से कोई और बात कहे।

सच्चाई मुसलमान के चरित्र का सबसे ऊँचा गुण है। मुसलमान एक बा-उसूल इंसान होता है और बा-उसूल इंसान के लिए यही एकमात्र सही तरीका है कि वह जब भी बोले, सच ही बोले। सच्चाई के ख़िलाफ़ बोलना उसके लिए किसी भी स्थिति में संभव नहीं है।

ईश्वर की पूरी दुनिया सच्चाई पर आधारित है। यहाँ हर चीज़ ख़ुद को उसी रूप में प्रकट करती है, जो वास्तव में उसका रूप है। सूरज, चाँद, नदियाँ, पहाड़, पेड़, तारे और ग्रह सभी सच पर कायम हैं। वे ख़ुद को वैसा ही दिखाते हैं, जैसे कि वे वास्तव में हैं। ईश्वर की विशाल दुनिया में कोई भी चीज़ झूठ पर आधारित नहीं है। ऐसी कोई चीज़ नहीं है, जिसकी असलियत कुछ और हो और वह अपने आपको किसी और रूप में प्रस्तुत करे।

यही प्रकृति का स्वभाव है, जो ब्रह्मांडीय स्तर पर फैला हुआ है। मुसलमान भी इसी स्वभाव का पालन करने वाला होता है। वह झूठ और दोहरी ज़िंदगी से पूरी तरह मुक्त होता है। मुसलमान पूरी तरह से सच्चाई में ढला होता है। उसे देखकर ही यह महसूस होता है कि वह अंदर से बाहर तक एक सच्चा इंसान है।

सच बोलना मुसलमान के लिए केवल एक नीति नहीं, बल्कि उसका धर्म है। सच्चाई के मामले में समझौता करना उसके लिए संभव नहीं है। वह सच बोलता है, क्योंकि इसके बिना वह जीवित नहीं रह सकता। वह सच बोलता है, क्योंकि वह जानता है कि सच न बोलना अपनी पहचान को मिटाना है और अपनी पहचान को मिटाना किसी के लिए भी संभव नहीं है।

Maulana Wahiduddin Khan
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