हदीस-ए-रसूल
क़ुरआन शब्द और अर्थ, दोनों के लिहाज़ से ईश्वर का कलाम है। हदीस उस संग्रह को कहा जाता है, जो अर्थ के लिहाज़ से ईश्वर की बात है, लेकिन शब्दों के लिहाज़ से वह रसूल की अपनी ज़बान से कही गई हो। मतलब यह कि क़ुरआन सीधे तौर पर ईश्वर का मार्गदर्शन है, जबकि हदीस परोक्ष रूप से ईश्वर का मार्गदर्शन है।
हदीस की बहुत-सी किताबें हैं। इनमें से कुछ किताबें विशेष रूप से अधिक महत्त्व रखती हैं। जैसे: सहीह अल-बुख़ारी, सहीह मुस्लिम इत्यादि। हदीस, क़ुरआन की व्याख्या और विस्तार है। क़ुरआन में ज़्यादातर बुनियादी आदेश दिए गए हैं, जिनकी विस्तृत जानकारी हदीस से मिलती है। इसी तरह सैद्धांतिक आदेशों का व्यावहारिक ढाँचा भी हदीस से ही समझा जा सकता है। इस्लाम में हदीस का इतना महत्त्व है कि इसे क़ुरआन से अलग नहीं किया जा सकता। हदीस की किताबों में जीवन के सभी पहलुओं के बारे में शिक्षाएँ और आदेश दिए गए हैं। जैसे यह कि इरादा और भावनाओं के लिहाज़ से एक मुसलमान को कैसा होना चाहिए। इबादत का विस्तृत तरीक़ा क्या है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए। भाषा का उपयोग कैसे करना चाहिए, खाने-पीने की सीमाएँ क्या हैं। परिवार व्यवस्था की संरचना कैसी होनी चाहिए, सामाजिक संबंधों की बुनियाद क्या हो। शांति और युद्ध के नियम क्या हैं, अगर मुसलमानों का कोई राज्य हो तो उसे कैसे चलाया जाए, आदि।
ऐसे तमाम मामले, जो इंसानी जीवन से जुड़े हैं और जिन पर दुनिया और परलोक की सफलता निर्भर करती है, वे सब विस्तार से हदीस के संग्रह में मौजूद हैं। हदीस के अध्ययन के बिना न तो इस्लाम का अध्ययन पूरा होता है और न ही हदीस के बिना इस्लामी जीवन का नक्शा बनाया जा सकता है। क़ुरआन के बाद इस्लाम का सबसे बड़ा स्रोत हदीस है। जब किसी हदीस के बारे में यह साबित हो जाए कि वह पैग़म्बर इस्लाम की हदीस है, तो उसे मानना उतना ही ज़रूरी हो जाता है, जितना कि क़ुरआन को मानना।