ईश्वर को पुकारना
दुआ का मतलब है पुकारना। इसका मतलब है कि इंसान अपनी ज़रूरतों और विभिन्न पहलुओं के लिए ईश्वर को पुकारे। यह पुकार ख़ुद में एक इबादत है।
ईश्वर एक जीवित और हमेशा रहने वाला अस्तित्व है। वह देखता है, सुनता है और यह ताक़त रखता है कि जो चाहे कर सके और जैसा चाहे घटनाओं का क्रम निर्धारित कर सके।
ईश्वर के बारे में यही विश्वास इंसान के अंदर दुआ की भावना पैदा करता है। जब इंसान को ईश्वर की पहचान हो जाती है, तो स्वाभाविक रूप से उसमें यह भावना भी पैदा हो जाती है कि वह अपनी ज़रूरतों के लिए ईश्वर को पुकारे। वह उससे दुनिया और परलोक की ख़ुशियाँ माँगे। वह उसे अपना सहारा बना ले।
दुआ का न कोई समय निर्धारित है, न कोई तरीक़ा और न ही इसकी कोई ख़ास भाषा है। इंसान हर पल, हर हाल में और हर भाषा में ईश्वर से दुआ कर सकता है। अगर दुआ सच्चे दिल से निकली है तो वह यक़ीनन ईश्वर तक पहुँचेगी। ईश्वर उसे तुरंत सुनेगा और उसके मुताबिक़ उसकी क़ुबूलियत का फ़ैसला करेगा।
कुछ दुआएँ वे हैं, जो विभिन्न इबादतों के साथ दोहराई जाती हैं, लेकिन ज़्यादातर दुआएँ वे हैं, जो किसी दूसरे काम से नहीं जुड़ी होतीं। जैसे इंसान जब रात में सोने के लिए बिस्तर पर जाता है, तो उसकी ज़ुबान से रात के अनुसार कुछ दुआएँ निकलती हैं। इसी तरह जब वह सुबह जागता है, तो वह नए दिन की शुरुआत के लिए दुआ करता है। जब वह किसी से मिलता है, खाता-पीता है, सवारी करता है, यात्रा करता है या अपने कामों में व्यस्त होता है, तो उसकी ज़ुबान से उस समय के अनुसार ऐसी दुआएँ निकलती हैं, जो ईश्वर से अच्छे परिणाम की माँग करती हैं।
दुआ का मतलब है ईश्वर से माँगना और यह माँगना कभी समाप्त नहीं होता। यह हर हाल में लगातार जारी रहता है। दुआ अपने रब के साथ कभी न ख़त्म होने वाले दिली रिश्ते का इज़हार है। एक मुसलमान की ज़िंदगी का कोई भी पल दुआ से खाली नहीं हो सकता।