सादगी
मुसलमान वह होता है, जो ईश्वर को पा लेता है। ईश्वर को पाने वाला व्यक्ति स्वाभाविक रूप से ऊँची सच्चाइयों में जीने लगता है। वह बाहरी चीज़ों से ऊपर उठकर अपनी रुचि की सामान आध्यात्मिक दुनिया में पा लेता है।
ऐसा व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुसार सादगी पसंद बन जाता है। उसका दृष्टिकोण यह हो जाता है—
Simple living, high thinking
सादा जीवन, ऊँची सोच
जो व्यक्ति आध्यात्मिक सच्चाइयों का स्वाद पा लेता है, उसके लिए बाहरी और भौतिक चीज़ों में कोई आनंद नहीं बचता। ऐसे व्यक्ति को सादगी में ही आनंद मिलने लगता है। बनावटी ताम-झाम उसकी नज़र में अपना आकर्षण खो देते हैं। उसकी आत्मा को प्राकृतिक चीज़ों में शांति मिलती है। अप्राकृतिक और कृत्रिम चमक-दमक उसे ऐसा महसूस होती है, जैसे वे उसकी आंतरिक दुनिया को अस्त-व्यस्त कर रही हों, जैसे वे उसके आध्यात्मिक सफ़र में बाधा बन रही हों।
सादगी मुसलमान की ताक़त है। यह उसकी सहायक होती है। सादगी अपनाकर मुसलमान इस योग्य हो जाता है कि वह अपना समय फ़ालतू चीज़ों में बर्बाद न करे। वह अपनी एकाग्रता को गैर-ज़रूरी चीज़ों में उलझने से बचाता है और इस तरह अपने आपको पूरी तरह अपने उच्च उद्देश्य को प्राप्त करने में लगा देता है।
सादगी मुसलमान का आहार है। यह उसकी विनम्रता का वस्त्र बन जाती है। सादगी के माहौल में उसकी शख़्सियत बेहतर रूप से विकसित होती है। सादगी ही उसकी सुंदरता है। सादगी ही उसकी ज़िंदगी है। अगर मुसलमान अपने आपको कृत्रिम चमक-दमक में पाए, तो उसे ऐसा महसूस होगा जैसे उसे किसी क़ैदख़ाने में बंद कर दिया गया हो।
मुसलमान अंत तक अपने आपको ईश्वर का सेवक समझता है। यह भावना उसे पूरी तरह विनम्रता में जीने वाला बना देती है और जो व्यक्ति इस भावना के साथ जीता है, उसका स्वभाव स्वाभाविक रूप से सादगी भरा होता है। ग़ैर-सादगी का तरीक़ा उसके स्वभाव से मेल नहीं खाता, इसलिए वह उसे अपनाता भी नहीं।