सफ़ाई
मुसलमान एक पवित्र इंसान होता है। सबसे पहले उसका ईमान उसकी आत्मा को शुद्ध करता है। इसके परिणामस्वरूप उसका बाहरी रूप भी पवित्र हो जाता है। उसकी ईमानी प्रवृत्ति उसे एक सफ़ाई पसंद इंसान बना देती है।
मुसलमान अपनी नमाज़ के लिए रोज़ाना कम-से-कम पाँच बार हाथ, पैर और चेहरा धोकर वुज़ू करता है। वह रोज़ाना एक बार नहाकर अपने पूरे शरीर को साफ़ करता है। उसके कपड़े भले ही सादे हों, लेकिन वह हमेशा धुले हुए साफ़-सुथरे कपड़े पहनना पसंद करता है।
वह यह भी चाहता है कि उसका घर साफ़-सुथरा रहे। इसलिए वह रोज़ाना घर की सफ़ाई करता है, सामान को सही तरीक़े से रखता है और हर उस चीज़ से घर को साफ़ रखता है, जो बदबू या गंदगी फैला सकती है। उसके लिए यह ज़रूरी है कि उसके शरीर से लेकर उसके घर तक सब कुछ साफ़-सुथरा हो।
सफ़ाई की यह आदत सिर्फ़ उसके शरीर और घर तक सीमित नहीं रहती। यह आदत उसके घर के बाहर उसके पड़ोस तक फैल जाती है। वह चाहता है कि जहाँ वह रहता है, वहाँ का पूरा वातावरण साफ़-सुथरा हो। वह यह सुनिश्चित करता है कि वह या उसके परिवार के लोग आस-पास की जगह को गंदा न करें। यही शिक्षा वह दूसरों को भी देता है। उसे तब तक संतोष नहीं मिलता, जब तक उसके पूरे पड़ोस में सफ़ाई-सुथराई का माहौल स्थापित न हो जाए।
साधारण लोगों के लिए सफ़ाई केवल सफ़ाई होती है, लेकिन मुसलमान के लिए सफ़ाई सामान्य रूप में सफ़ाई भी है और इसके साथ ही यह एक इबादत भी है, क्योंकि वह जानता है कि ईश्वर सिर्फ़ साफ़-सुथरे लोगों को पसंद करता है।
इसके अलावा, मुसलमान का ईमान यह सुनिश्चित करता है कि जब वह अपने शरीर को पवित्र करता है, तो उसकी आत्मा भी शुद्ध हो जाए। जब वह शारीरिक सफ़ाई करता है, तो साथ में यह प्रार्थना भी करता है कि “हे ईश्वर, मेरे बाहरी रूप के साथ-साथ मेरे भीतर को भी शुद्ध कर दे,” और यह उसकी आत्मा की पवित्रता का माध्यम बन जाती है।