शांति प्रियता

मुसलमान एक शांति प्रिय व्यक्ति होता है। ईमान और शांति प्रियता इतनी गहराई से जुड़े हुए हैं कि मुसलमान हर परिस्थिति में शांति बनाए रखने की कोशिश करता है। वह हर दूसरी चीज़ खोना बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन शांति खोना उसे स्वीकार नहीं।

मुसलमान जिस जीवन को इस दुनिया में जीना चाहता है, वह केवल शांतिपूर्ण परिस्थितियों में ही संभव है। शांति की स्थिति मुसलमान के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है, जबकि अशांति की स्थिति उसके लिए प्रतिकूल वातावरण बनाती है।

शांति हमेशा एक बलिदान चाहती है। यह बलिदान यह है कि यदि दूसरी ओर से अशांति के कारण उत्पन्न हों, तो भी उन्हें अनदेखा करते हुए शांति की स्थिति को बनाए रखा जाए। मुसलमान हमेशा इस बलिदान को देने के लिए तैयार रहता है। वह हर नुकसान और अन्याय को सहन करता है, ताकि शांति भंग न हो और शांति का माहौल लगातार बना रहे।

मुसलमान भीतर से बाहर तक एक रचनात्मक (creative) व्यक्ति होता है। उसकी रचनात्मक गतिविधियाँ केवल शांतिपूर्ण माहौल में ही चल सकती हैं। इसलिए वह हर क़ीमत चुका कर शांति को बनाए रखता है, ताकि उसकी रचनात्मकता बिना किसी रुकावट के जारी रहे।

मुसलमान प्रकृति के बग़ीचे का एक फूल है। फूल गर्म हवा में मुरझा जाता है और ठंडी हवा में अपनी सुंदरता बनाए रखता है। यही स्थिति मुसलमान की है। शांति मुसलमान की आवश्यक ज़रूरत है। शांति उसकी जीवनरेखा है। मुसलमान अत्यंत लालसा के साथ शांति चाहता है, ताकि उसके इंसानी वृक्ष पर ईमान का फूल खिले और बिना किसी बाधा के प्रकृति की हवा में अपनी सुंदरता बिखेर सके।

शांति ब्रह्मांड का नियम है। शांति प्रकृति का सार्वभौमिक कानून है। ईश्वर को शांति पसंद है, अशांति उसे पसंद नहीं। यही तथ्य इस बात के लिए पर्याप्त है कि मुसलमान शांति को पसंद करे। वह किसी भी स्थिति में अशांति बर्दाश्त नहीं कर सकता।

Maulana Wahiduddin Khan
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