सोचिए, सोचिए, सोचिए

इंसान को पैदा करके इस धरती पर आबाद करना इनाम
 के रूप में नहीं है, बल्कि वह परीक्षा के रूप में है

 अगर पहाड़ की गुफा से किसी दिन एक जीवित इंसान निकल आए तो सारे देखने और जानने वाले लोग उसको आश्चर्यजनक घटना समझेंगे। सारे लोग यह सोचने लगेंगे कि ऐसा क्योंकर हुआ। माँ के पेट से एक इंसान का पैदा होना भी इसी तरह की एक घटना है, जो भयानक सीमा तक विचित्र है। लोग माँ के पेट से जीवित इंसान को पैदा होते हुए देखते हैं, लेकिन वे उसके बारे में कुछ नहीं सोचते।

यह अंतर क्यों है? इसका कारण यह है कि माँ के पेट से इंसान का पैदा होना प्रतिदिन की एक घटना है। बार-बार देखने के कारण लोग इस घटना के आदी हो गए हैं, इसलिए वे इसको फॉर ग्रांटेड (for granted) लिये रहते हैं। वे इस मामले में सोचने की ज़रूरत नहीं समझते। लोग अगर इस मामले पर गंभीरता से सोचें तो वे इंसान के जन्म की घटना में रचयिता के अस्तित्व की खोज कर लें। जब वे देखें कि एक जीवित और विवेकपूर्ण इंसान पैदा होकर धरती पर चल-फिर रहा है, वह देखता और सुनता है और बोलता है, तो उनको महसूस हो कि हर इंसान रचयिता के अस्तित्व की एक चलती-फिरती निशानी (sign) है। हर इंसान लोगों को अपने रचयिता का एक जीवित परिचय प्रतीत होने लगे।

इसी तरह इंसान जब पैदा होकर मौजूदा ज़मीन (planet earth) पर आता है, तो वह पाता है कि यहाँ उसके लिए एक पूरा जीवन सहायक प्रणाली (life support system) मौजूद है। यह जीवन सहायक प्रणाली इतनी परिपूर्ण (perfect) है कि कोई मूल्य दिए बिना वह इंसान की हर छोटी और बड़ी ज़रूरत को बहुत ही श्रेष्ठ रूप में पूरा कर रहा है। ज़मीन से लेकर आसमान तक सारा संसार असाधारण रूप से इंसान की सेवा में लगा हुआ है।

उसके बाद वह दिन आता है, जबकि इंसान अचानक मर जाता है। इंसान अपने स्वभाव के अनुसार हमेशा ज़िंदा रहना चाहता है, लेकिन सौ साल के अंदर ही यह घटना घटती है कि हर औरत और आदमी अपनी इच्छा के ख़िलाफ़ इस संसार को हमेशा के लिए छोड़कर चले जाते हैं।

 धरती पर पैदा होने वाला हर इंसान दो चीज़ों का अनुभव करता है। पहले जीवन का अनुभव, उसके बाद मौत का अनुभव। अगर इंसान गंभीरता से इन घटनाओं पर सोचे तो वह निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी हक़ीक़त को खोज लेगा, वह यह कि इंसान को पैदा करके इस धरती पर आबाद करना इनाम के रूप में नहीं है, बल्कि वह परीक्षा (test) के रूप में है।

वर्तमान संसार में इंसान अपने आपको आज़ाद महसूस करता है। यह आज़ादी इसलिए है, ताकि यह पता किया जाए कि कौन-सा व्यक्ति अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल करता है और कौन-सा व्यक्ति अपनी आज़ादी का ग़लत इस्तेमाल करता है। कौन-सा व्यक्ति अनुशासित जीवन व्यतीत करता है और कौन-सा व्यक्ति अनुशासित जीवन का तरीक़ा नहीं अपनाता।

आदमी अगर गंभीरता से सोचे तो वह इस सच्चाई को पा लेगा कि मौत असल में रचयिता के सामने हाज़िरी का दिन है। इंसान अपनी हक़ीक़त की दृष्टि से एक ऐसा जीव है, जिसका कोई अंत नहीं, लेकिन उसके जीवनकाल (lifespan) को दो भागों में बाँट दिया गया है— मौत से पहले का जीवनकाल (pre death period) और मौत के बाद का जीवनकाल। मौत से पहले का जीवनकाल परीक्षा के लिए है और मौत के बाद का जीवनकाल (post death period) उसके पिछले रिकॉर्ड के अनुसार इनाम या सज़ा पाने के लिए।

इंसान आज अपने आपको इस संसार में एक जीवित और विवेकपूर्ण अस्तित्व के रूप में पाता है। यह जीवित और विवेकपूर्ण अस्तित्व एक स्थायी (eternal) अस्तित्व है। मौत वह दिन है, जबकि यह जीवित और विवेकपूर्ण अस्तित्व अपने इसी वर्तमान रूप में अस्थायी (temporary) संसार से निकाला जाता है और उसको इसी जीवित और विवेकपूर्ण अस्तित्व की स्थिति में अगले स्थायी संसार की ओर भेज दिया जाता है।

यह पल हर औरत और हर आदमी पर अनिवार्य रूप से आने वाला है। वह अनुमान से परे गंभीर पल होगा। मौत के बाद आने वाले इस जीवनकाल में यही वर्तमान इंसान होगा, लेकिन उसके सारे संसाधन उससे हमेशा के लिए छूट चुके होंगे। उसके पीछे वह संसार होगा, जो उससे हमेशा के लिए छूट गया और उसके आगे वह संसार होगा, जहाँ उसको पूरी तरह से बिना साधन के हमेशा के लिए रहना है। समझदार वह है, जो इस आने वाले दिन के लिए अपने आपको तैयार करे।

Maulana Wahiduddin Khan
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