कोई आदमी मौत को जीत नहीं सकता
एक जोगी इस उम्मीद के साथ उसके महल में लाया गया कि
उसकी प्रार्थना सफल होगी, लेकिन वह निष्प्रभावी सिद्ध हुई।
उसका आदेश था कि मौत का शब्द उसके सामने न बोला जाए, लेकिन साठवें वर्ष में पहुँचकर उसको पता चला कि कोई भी व्यक्ति मौत को जीत नहीं सकता।
स्पेन के तानाशाह फ्रेंको कई दिन बीमारी से लड़ने के बाद आख़िरकार इस संसार से चल बसे। फ्रेंको के जीवनकाल को लंबा करने के उद्देश्य से स्पेन में डॉक्टरों ने जो रात-दिन प्रयास किया, उससे चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी ज़बरदस्त बहस छिड़ गई थी कि क्या उस समय जबकि प्रकृति के सभी क़ानून के अनुसार उनके होशो-हवास जवाब दे चुके थे, उन्हें कुछ सप्ताह पहले ही मरने देना चाहिए था? या क्या डॉक्टर इस बात पर सही थे कि हर तरह की चिकित्सीय सहायता उन्हें प्रदान करके कुछ देर तक और शारीरिक रूप से जीवित रखने के लिए उनके तापमान को आंशिक रूप से स्थिर कर देते? इसके अलावा क्या यह बात नैतिक नियमों के अनुसार है कि क़ौम के किसी लीडर का जीवन अप्राकृतिक (unnatural) रूप से लंबा कर देना चाहिए या कि उसे लंबा किया जा सकता है? क्योंकि यह चिकित्सा के संसार में एक ज़बरदस्त बहस छिड़ने का कारण हो सकती है। बहुत से विद्वानों ने इस विषय पर चर्चा की है ।
यह बात असाधारण रूप से संयोगात्मक (coincident) है कि इस मामले पर एक पुस्तक अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है, जिसके लिखने में 13 वर्ष लग गए थे। प्रसिद्ध इतिहासकार पॉल मरे केंडल (Paul Murray Kendall) ने यह पुस्तक फ़्रांस के राजा लुई-11 के बारे में लिखी है, जिसे मरे हुए लगभग 500 वर्ष हो चुके हैं। लुई एक ऐसा राजा था, जो मरना नहीं चाहता था, इसलिए उसने बहुत प्रयास किया कि उसका जीवन लंबा हो जाए।
फ्रेंको की तरह राजा लुई एक ऐसी क़ौम बनाने का ज़िम्मेदार था, जिसकी केंद्रीय सरकार बहुत मज़बूत थी, लेकिन क़ौम उसके आँख बंद करने के बाद बिखराव या आपसी लड़ाई का शिकार हो सकती थी। उसे इस बात की अच्छी तरह से जानकारी थी, जैसा कि हमारे आज के ज़माने के लीडरों को जानकारी है।
लुई की आयु 58 वर्ष थी, जब उस पर लकवे (paralysis) का हमला हुआ था। उसे तब इस बात की जानकारी हो गई कि वह बहुत देर तक जीवित न रह सकेगा, क्योंकि उसके परिवार में कोई भी राजा अपना 60वाँ जन्मदिन नहीं मना सका था।
लुई किसी सुरक्षित क़िले में शांति से रहना चाहता था। इसलिए उसने एक महल में रहना शुरू किया, जहाँ बहुत कम लोगों को प्रवेश की अनुमति थी। उस महल की ओर जाने वाली सड़कों पर सुरक्षा-बाड़ लगा दी गई थी और महल के चारों ओर खाई खोद दी गई थी। चालीस तीरंदाज़ पत्थरों की दीवारों पर बैठे पहरा देते रहते थे। उन्हें आदेश था कि अगर कोई अनुमति के बिना महल के निकट आने की हिम्मत करे तो उसे मार दिया जाए।
इसके अलावा 400 घुड़सवार दिन-रात इलाक़े में पहरा देते रहते थे। महल के अंदर राजा लुई बड़ा ऐश-ओ-आराम वाली ज़िंदगी (luxurious life) बिता रहा था। उसके कमरे में ख़ूबसूरत तस्वीरें लटकी हुई थीं। निपुण संगीतकार (expert musician) अपना संगीत सुनाकर उसे ख़ुश रखते। बड़े-बड़े पिंजरों में बंद कुत्ते और पक्षी, जो वहाँ रखे हुए थे, उसे बहुत पसंद थे। अधिकांश समय वह अपने शरीर को सिकोड़े हुए दयनीय स्थिति में आरामकुर्सी पर ही बिताता । उसके सामने एक ख़ूबसूरत बग़ीचा था, जिसे वह अपने महल की दूसरी मंज़िल से देखता रहता।
हालाँकि वह शारीरिक रूप से कमज़ोर हो चुका था। अपनी प्रजा का जीवन और मौत उसके अधिकार में थी, इस पर भी वह चिंतित था कि अपनी प्रजा पर यह बात कैसे स्पष्ट करे कि वह सबसे बड़ा शासक है। उसको सबसे बड़ा डर इस बात का था कि सत्ता का भूखा कोई सरदार या सामंत उसे हटाकर स्वयं सत्ता न सँभाल ले और उसे अपना अंतिम समय एक दीवाने बूढ़े की तरह न बिताना पड़े।
अपने बुढ़ापे में लुई हर एक पर संदेह करने लगा था। उसे अपने पुराने कर्मचारियों पर संदेह था, इसलिए उन्हें हटाकर उनकी जगह उसने विदेशी लोग भरती कर लिये थे और फिर उनको और उन अधिकारियों को भी, जो उसकी सुरक्षा के लिए नियुक्त थे, वह लगातार बदलता रहता था । वह उनसे यही कहा करता, “प्रकृति को परिवर्तन बहुत पसंद है।”
सरकारी काम-काज में हिस्सा लेने के लिए वह बहुत बूढ़ा हो चुका था। उसे यह चिंता भी सताए जा रही थी कि शायद प्रजा इस बात को भी भूल जाए कि वह अभी तक जीवित है। उस समय के एक इतिहासकार ने उसके बारे में लिखा है—
“यह सिद्ध करने के लिए कि वह अभी तक शासक है, उसने हर तरह की चालें चलीं। वह अधिकारियों को उनके पद से हटा देता और उनकी जगह नए अधिकारी नियुक्त कर दिए जाते। वह किसी का वेतन कम कर देता तो किसी का वेतन बढ़ा देता। उसने अपना समय अधिकारियों को नियुक्त करने और उनका भट्ठा बिठाने में लगाया था।”
लेकिन यह सब कुछ पर्याप्त न था। लुई-11 एक अच्छा शिकारी था। जानवरों से उसे बहुत लगाव था। उसने घोड़े और कुत्ते मँगाने के लिए सारे यूरोप में अपने प्रतिनिधि भेजे और बाज़ार की क़ीमत से भी ज़्यादा क़ीमत देकर उन्हें ख़रीदा। इस तरह इटली, स्वीडन और जर्मनी से घोड़े और कुत्ते आने शुरू हो गए। उन्हें उसके महल में पहुँचा दिया जाता, लेकिन स्वास्थ्य की कमज़ोरी के कारण उसके लिए यह संभव न था कि वह उन्हें देख भी सके या जो लोग उनको ख़रीदकर लाए हैं, उनसे बात तक भी कर सके, लेकिन उसे इस बात की जानकारी थी कि सारे यूरोप में उसकी इस ख़रीदारी पर चर्चाएँ हो रही हैं।
वह अभी तक जीवित था और अपने स्वास्थ्य को निरोगी रखने का वह इतना ज़्यादा इच्छुक था कि उसने इस बात का आदेश दे रखा था कि मौत का शब्द उसके सामने बोला ही न जाए। उसका अपना ख़ास चिकित्सक उसके पास एक नौकर की तरह काम करता था और राजा का वह पसंदीदा बन गया था। उसे 10,000 स्वर्ण मुद्राएँ हर महीने दी जाने लगी थीं। उस समय पूरे यूरोप के किसी मैदान-ए-जंग में 40 वर्ष काम करके भी एक सैनिक अधिकारी इतनी रक़म नहीं कमा सकता था। अगर कोई आदमी उसके जीवन को एक दिन भी बढ़ा सके तो वह अपना सारा ख़ज़ाना लुटाने को तैयार था। 23 जुलाई, 1483 ई० को जब उसका 60वाँ जन्मदिन निकट आने वाला था, वह और भी चिंतित हो गया। उस समय वह इतना कमज़ोर हो गया था कि अपने मुँह तक निवाला ले जाने में उसे बड़ी कठिनाई होती थी।
उसके मन में एक विचार आया। उसने हज़ारों सोने के सिक्के जर्मनी, रोम और नेपल्स (Naples) के गिरजाघरों और धार्मिक मार्गदर्शकों में बाँटना शुरू कर दिए। उसने तीन समुद्री जहाज़ देकर अपने बेहतरीन कप्तान को एक द्वीप पर भेजा, ताकि वहाँ से बड़े-बड़े कछुए लाए जाएँ। उसको बताया गया था कि यह समुद्री कछुए जीवन देने वाली विशेषताओं के मालिक हैं।
उसे याद था कि फ़्रांस के राजाओं को उनके राज्याभिषेक (coronation) के समय एक विशेष तरह की क्रीम का तिलक लगाया जाता है। यह एक कहावत है कि यह क्रीम 496 ई० में पुराने ज़माने के एक राजा को एक कबूतर ने दी थी और वह उसकी मौत से कुछ ही दिन पहले एक सुनहरे रथ में पहुँची थी। लुई ने सभी धार्मिक साधनों को, जो संभव था, इस उम्मीद के साथ इकट्ठा किया कि वह ज़्यादा लंबे समय तक जीवित रह सके।
आख़िरकार नेपल्स की एक गुफा से एक जोगी इस उम्मीद के साथ उसके महल में लाया गया कि उसकी प्रार्थना सफल होगी, लेकिन वह बेअसर साबित हुई। फिर भी लुई उसे अपने पास रखने का इतना ज़्यादा इच्छुक था कि उसने अपने वित्त मंत्री (finance minister) को आदेश दे दिया था कि उस जोगी के लिए चाहे सारा ख़ज़ाना क्यों न ख़र्च करना पड़े, अवश्य ख़र्च किया जाए।
इन सभी प्रयासों के बाद राजा लुई पर फ़ालिज का हमला हुआ और 30 अगस्त को वह इस संसार से चल बसा। उसके मुँह से अंतिम शब्द यही निकले — “मैं इतना बीमार तो नहीं हूँ, जितना आप लोग सोचते हैं।”
फ़्रांस की जनता को यह बात अच्छी तरह से याद है कि अप्रैल, 1974 को राष्ट्रपति जॉर्ज पोपेडो ने अपने अंतिम समय में कहा था, जब वह कैंसर के कारण मर रहे थे— “मैं इतना बीमार तो नहीं हूँ, जितना आप लोग सोचते हैं।” और कुछ दिन बाद उसकी मौत हो गई।
आख़िरकार लुई-11 को पता चल गया कि कोई आदमी मौत से जीत नहीं सकता।