अपने जनाज़े की नमाज़

जो आदमी इतना ज़्यादा लापरवाह हो कि दूसरे की मौत देखकर भी उसको
अपनी
मौत याद न आए, वह एक तरह से कठोर पत्थर है

दिल्ली में एक मुसलमान की मौत हुई। जनाज़े की नमाज़ पढ़ाने के बाद उनको एक स्थानीय क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया। मेरे एक साथी ने बताया कि वह उस नमाज़ में शामिल थे। नमाज़ शुरू होने वाली थी तो उनके पास खड़े हुए एक मुसलमान ने पूछा– फ़र्ज़ (obligatory) नमाज़ की नीयत करूँ या सुन्नत (voluntary) की नीयत करूँ। उन्होंने कहा कि स्वयं अपने जनाज़े की नमाज़ की नीयत करो। उस आदमी को हैरानी हुई। बाद में उन्होंने उस आदमी से कहा कि किसी के मरने पर जनाज़े की नमाज़ पढ़ना केवल एक रस्म नहीं, वह एक बहुत बड़ी सच्चाई को याद दिलाना है।

यह सच्चाई है कि मरने वाले की जिस तरह मौत हुई है, उसी तरह मेरी भी मौत होने वाली है। सामूहिक रूप से जनाज़े की नमाज़ वास्तव में इसी सच्चाई को याद करने के लिए है। सच्चाई यह है कि जनाज़े की सच्ची नमाज़ उसी इंसान की है, जो दूसरे की मौत में अपनी मौत को याद करे। वह सोचे कि आज जो कुछ मरने वाले के साथ घटित हुआ है, वही स्वयं मेरे साथ घटित होने वाला है। मौत को देखकर जो आदमी इस तरह सोचे,और वह जब जनाज़े की नमाज़ के लिए खड़ा होगा तो उसे यह अनुभव होगा कि मैं स्वयं अपने जनाज़े की नमाज़ पढ़ रहा हूँ। जो कुछ दूसरे के साथ आज घटित हुआ है, वही मेरे साथ कल घटित होने वाला है।

मौत किसी एक इंसान का मामला नहीं, मौत की घटना हर औरत और हर आदमी पर अनिवार्य रूप से घटित होने वाली है। बड़ी बात यह कि मौत किसी से पूछकर नहीं आती, मौत अचानक आ जाती है और मौत जब आ जाती है तो कोई भी इंसान उसको वापस करने पर समर्थ नहीं होता।

मौत एक अटल सच्चाई है, एक इंसान के लिए भी और दूसरे इंसान के लिए भी। आदमी को चाहिए कि वह हर पल अपनी मौत को याद करे, जो आदमी इतना ज़्यादा लापरवाह हो कि दूसरे की मौत को देखकर भी उसको अपनी मौत याद न आए, वह एक तरह से कठोर पत्थर है। वह देखने पर इंसान दिखाई देता है, लेकिन वह इंसानी गुणों से उसी तरह ख़ाली है, जिस तरह पत्थर की कोई मूर्ति इंसानी गुणों से ख़ाली होती है। मौत को याद करना संवेदनशील (sensitive) इंसान की विशेषता है और मौत को याद न करना असंवेदनशील (insensitive) इंसान का गुण है

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जाने-माने अरबपति

हॉवर्ड रोबार्ड ह्यूज (Howard Robard Hughes) अमेरिका का एक जाना-माना अरबपति था। अप्रैल, 1976 में एक हवाई यात्रा के समय उसे दिल का दौरा पड़ा। उसके हवाई जहाज़ को तुरंत ह्यूस्टन में उतारा गया, लेकिन अस्पताल पहुँचने से पहले उसकी मौत हो चुकी थी।

अपने वकील पिता से उसे एक मिलियन डॉलर विरासत के रूप में मिले थे, लेकिन उसने अपनी असाधारण व्यापारिक योग्यता से अपनी पूँजी को 20 हज़ार करोड़ डॉलर से भी ज़्यादा बढ़ा लिया। उसके हवाई जहाज़ के कर्मचारी, जो उसके साथ यात्रा में थे, उन्होंने उसके अंतिम क्षणों के बारे में जिन आँखों देखे हालात का वर्णन किया, उसकी बुनियाद पर प्रसिद्ध अमेरिकी आर्टिस्ट शरल सॉलोमन ने उसकी रूपरेखा तैयार की है। उस रूपरेखा में उसकी जीवन-यात्रा के अंतिम क्षणों को दर्शाया गया है, अमेरिका का सफल व्यापारी उस रूपरेखा में भय, निराशा, लाचारी, नाकामी और अविश्वास की प्रतिमा दिखाई देता है।

अमेरिकी व्यापारी की यह डरावनी तस्वीर उस आंतरिक स्थिति को साकार कर रही है, जो एक आदमी की उस समय होती है, जब वह मौत के दरवाज़े पर पहुँच चुका हो, उसके पीछे वह जीवन हो जिसे वह छोड़ चुका और आगे वह जीवन हो, जिसमें अब वह हमेशा के लिए चला जाएगा।

Maulana Wahiduddin Khan
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