सफल व्यक्ति वह है, जो जीवन से ज़्यादा मौत के बारे में सोचे,
जो हर मिली हुई चीज़ को ईश्वर का उपहार समझे।
एक साहब मेरठ (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले थे। लगभग 45 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गई। पहली बार जब मैं उनसे मिला था तो देखने पर वह बिल्कुल ठीक और स्वस्थ दिखाई देते थे। बाद में उनको कैंसर की बीमारी हो गई। इलाज के बाद भी रोग बढ़ता गया, यहाँ तक कि वह बिस्तर पर पड़ गए। अंतिम समय में उनकी स्थिति यह थी कि वह हड्डियों का एक ढाँचा बन चुके थे। उनकी पाचन-प्रणाली इतनी ज़्यादा बिगड़ चुकी थी कि सादा भोजन भी वह नहीं ले सकते थे, यहाँ तक कि पानी पीना भी उनके लिए बहुत कठिन हो गया था। उस ज़माने में कोई आदमी उनका हालचाल जानने के लिए आता तो वह उससे कहते कि तुम मेरे बारे में न सोचो, बल्कि स्वयं अपने बारे में सोचो। तुम धन्य हो कि तुमको स्वस्थ शरीर मिला है। तुम खाना खाते हो, पानी पीते हो और धरती पर चलते हो। ये सब चीज़ें ईश्वर का उपहार हैं। वह जब चाहे इस उपहार को छीन ले और फिर तुम्हारे पास कुछ भी शेष न रहे।
इंसान को एक स्वस्थ शरीर मिला हुआ है। इंसान को पैदा होने के बाद यह स्वस्थ शरीर देखने पर अपने आप मिल जाता है, इसलिए वह उसको ‘फॉर ग्रांटेड’ ले लेता है। वह कभी सोचता नहीं कि स्वस्थ शरीर पूरी तरह से ईश्वर का उपहार है। इस उपहार को मानते हुए मुझे ईश्वर के आगे झुक जाना चाहिए।
यही मामला आयु का है। आदमी जब तक जीवित है, वह समझता है कि उसका यह जीवन हमेशा शेष रहेगा। वह कभी अपनी मौत के बारे में नहीं सोचता। यह निश्चित रूप से सबसे बड़ी भूल है।
यही हर औरत और हर आदमी की परीक्षा है। सफल व्यक्ति वह है, जो जीवन से ज़्यादा मौत के बारे में सोचे, जो हर मिली हुई चीज़ को ईश्वर का उपहार समझे। यही वह इंसान है, जो परीक्षा में सफल हुआ। इसके विपरीत जो इंसान ईश्वर का आभारी न हो और मौत को भुलाए हुए हो, वही वह व्यक्ति है, जो परीक्षा में विफल हो गया। पहले इंसान के लिए स्थायी स्वर्ग है और दूसरे इंसान के लिए स्थायी नरक।