मरने वालों की चर्चा
मौत का अर्थ यह है कि आदमी ने अपने जीवन के पहले अवसर
को खो दिया और जहाँ तक दूसरे अवसर का सवाल है,
वह कभी किसी को मिलने वाला नहीं।
यह एक आम रिवाज है कि जब कोई आदमी मरता है तो उसके बारे में पत्रिकाओं और अख़बारों में लेख प्रकाशित किए जाते हैं, उसकी याद में प्रशंसात्मक लेख छपते हैं, उसकी याद में शानदार सभाएँ की जाती हैं। इन सब में यह होता है कि मरने वाले के कारनामों और उसकी महानताओं का वर्णन किया जाता है । यह तरीक़ा भटकाने (misleading) का एक बड़ा माध्यम है।
किसी की मौत पर जो वास्तविक घटना घटित होती है, वह यह है कि मरने वाला अपनी महानता की सभी निशानियों को अचानक छोड़ देता है। मौत उसको एक ऐसे संसार में पहुँचा देती है, जहाँ वह पूरी तरह से अकेला और बिना साधन और बिना सामान का होता है। वर्तमान की दृष्टि से मरने वाले की वास्तविक स्थिति यही होती है, लेकिन सारे लिखने और बोलने वाले मरने वाले के वर्तमान की कोई चर्चा नहीं करते, वे केवल उसके अतीत को लेकर उसकी सांसारिक प्रशंसा का गुणगान करते हैं, हालाँकि मरने वाला व्यावहारिक रूप से अपने इस अतीत से पूरी तरह से कट चुका होता है।
मौत की असल हैसियत यह है कि वह किसी इंसान के लिए संपूर्ण अलगाव (total detachment) के समान होती है। मौत का अर्थ यह है कि आदमी ने अपने जीवन के पहले अवसर (first chance) को खो दिया और जहाँ तक दूसरे अवसर (second chance) का सवाल है, वह कभी किसी को मिलने वाला नहीं। हर मरने वाला वास्तव में जीवन के इस गंभीर पहलू को याद दिलाता है, लेकिन यही वह पहलू है जिसका वर्णन न लेखों में किया जाता है और न ही भाषणों में।
मरने वाले की ख़ूबी और श्रेष्ठता को पढ़कर या सुनकर प्रत्यक्ष रूप से ऐसा लगता है कि वह आज भी उन्हीं ख़ूबियों का मालिक है, हालाँकि ऐसा बिल्कुल नहीं। वक्ता और लेखक जिस इंसान के बारे में यह बताते हैं कि वह एक ऐतिहासिक इंसान था, बहुत संभव है कि उस समय स्वयं मरने वाले का हाल यह हो कि वह एक ऐतिहासिक इंसान न हो और पछतावे व बेबसी के संसार में पड़ा हो।