मौत की समझ
सफल इंसान वह है जो ईश्वरीय निर्णय के अनुसार मौत के मामले की
खोज कर ले और उसके अनुसार अपने जीवन को आकार दे।
लोग देखते हैं कि हर पैदा होने वाला एक सीमित समय के बाद मर जाता है। इसके बावजूद यह बहुत ही विचित्र बात है कि कोई व्यक्ति स्वयं अपनी मौत के बारे में नहीं सोचता। वह दूसरों को मरते हुए देखता है, लेकिन स्वयं अपनी मौत के बारे में वह लापरवाही में रहता है।
वर्तमान समय में DNA की खोज इस प्रश्न का उत्तर है। यह एक नया विज्ञान है। इस पर संसार के अनेक प्रतिभाशाली लोगों ने काम किया है। इसमें इंडिया के नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ० हरगोविंद ख़ुराना (मृत्यु : 2011) का नाम भी शामिल है। इस आधुनिक खोज से यह ज्ञात हुआ है कि हर इंसान के शरीर में लगभग 37 ट्रिलियन जीवित कोशिकाएँ (living cells) होती हैं। हर कोशिका के नाभिक (nucleus) में एक अदृश्यमान DNA मौजूद रहता है। DNA के अंदर इंसानी व्यक्तित्व के बारे में सभी छोटी-बड़ी जानकारियाँ कोड के रूप में मौजूद रहती हैं। यह जानकारियाँ इतनी ज़्यादा होती हैं कि अगर उनको डी-कोड किया जाए तो वह ब्रिटानिका जैसी बड़ी और मोटी एनसाइक्लोपीडिया (encyclopedia) के एक मिलियन से ज़्यादा पन्नों से भर देंगी।
One human DNA molecule contains enough
information to fill a million page of encyclopaedia.
DNA के अंदर इंसानी व्यक्तित्व के बारे में सभी जानकारियाँ दर्ज होती हैं, लेकिन इस सूची में केवल एक अपवाद (exception) है और वह मौत है । DNA की लंबी सूची मौत की कल्पना से ख़ाली है। मौत की कल्पना इंसानी चेतना (human consciousness) में मौजूद नहीं। यही कारण है कि आदमी दूसरों को मरते हुए देखता है, लेकिन वह स्वयं अपनी मौत के बारे में सोच नहीं पाता। यही इंसान की परीक्षा है।
किसी आदमी की मौत DNA की प्रोग्रामिंग के अंतर्गत नहीं होती, बल्कि वह सीधे तौर पर ईश्वरीय निर्णय के अंतर्गत होती है। सफल इंसान वह है, जो अपने अंदर एंटी प्रोग्रामिंग सोच पैदा करे। वह ईश्वरीय निर्णय के अनुसार मौत के मामले की खोज कर ले और उसके अनुसार अपने जीवन की योजनाओं को आकार दे।