हज़रत इब्राहीम ईसा मसीह से तक़रीबन 2000 साल पहले इराक़ के क़दीम शहर उर (Ur) में पैदा हुए। उन्होंने 175 साल से ज़्यादा उम्र पाई। उर क़दीम इराक़ की राजधानी था। मज़ीद यह कि यह इलाक़ा क़दीम आबाद दुनिया यानी मेसोपोटामिया का मरकज़ था। हज़रत इब्राहीम ने अपनी तमाम आला सलाहियतों और कामिल दर्दमंदी के साथ अपने ज़माने के लोगों को तौहीद की तरफ़ बुलाया। उस वक़्त के इराक़ी बादशाह नमरूद (Nemrud) तक भी अपनी दावत पहुँचाई, लेकिन कोई भी शख़्स आपकी दावत को क़बूल करने के लिए तैयार न हुआ यहाँ तक कि हुज्जत पूरी करने के बाद जब इराक़ से आप निकले आपके साथ सिर्फ़ दो इंसान थे— आपके भतीजे और आपकी बीवी।
हज़रत इब्राहीम से पहले मुख़्तलिफ़ ज़मानों और मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में ख़ुदा के पैग़ंबर आते रहे और लोगों को तौहीद की दावत देते रहे, लेकिन उन तमाम पैग़ंबरों के साथ यह हुआ कि लोग उनका इनकार करते रहे। उन्होंने पैग़ंबरों का मज़ाख़ उड़ाया ।
(क़ुरआन, 36:30)
हज़रत इब्राहीम के ऊपर पैग़ंबर की तारीख़ का एक दौर ख़त्म हो गया। अब ज़रूरत थी कि दावत-इलल्लाह की नई मंसूबाबंदी की जाए। उस मंसूबे के लिए अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम का इंतख़ाब किया। चुनांचे हज़रत इब्राहीम अपनी बीवी हाजरा और छोटे बच्चे इस्माईल के साथ इराक़ से निकले और मुख़्तलिफ़ शहरों से गुज़रते हुए आख़िरकार वहाँ पहुँचे, जहाँ आज मक्का आबाद है। एक रिवायत से मालूम होता है कि सफ़र फ़रिश्ते जिब्राईल की रहनुमाई में तय हुआ।
(तारीख़ अल-तबरी, 1/254)
हाजरा हज़रत इब्राहीम की बीवी थी। उनसे एक औलाद पैदा हुई, जिसका नाम इस्माईल रखा गया। एक ख़ुदाई मंसूबे के तहत हज़रत इब्राहीम ने हाजरा और उनके छोटे बच्चे (इस्माईल) को अरब में मक्का के मुक़ाम पर ले जाकर बसा दिया, जो उस वक़्त बिलकुल ग़ैर-आबाद था। उस वाक़ये के बारे में क़ुरआन में मुख़्तसर तौर पर यह हवाला मिलता है—
“और जब इब्राहीम ने कहा— ऐ मेरे रब ! उस शहर को अमन वाला बना और मुझे और मेरी औलाद को उससे दूर रख कि हम बुतों की इबादत करें। ऐ मेरे रब ! उन बुतों ने बहुत लोगों को गुमराह कर दिया। बस जिसने मेरी पैरवी की, वह मेरा है और जिसने मेरा कहा न माना, तो तू बख़्शने वाला मेहरबान है। ऐ हमारे रब ! मैंने अपनी औलाद को एक बिना खेती वाली वादी में तेरे मोहतरम घर के पास बसाया है, ताकि वह नमाज़ क़ायम करें। बस तू लोगों के दिलों को उनकी तरफ़ माइल कर दे और उनको फलों की रोज़ी अता फ़रमा, ताकि वह शुक्र करें।”
(क़ुरआन, 14:35-37)
हाजरा के बारे में क़ुरआन में सिर्फ़ मुख़्तसर इशारा आया है। ताहम हदीस की मशहूर किताब सही बुख़ारी में हाजरा के बारे में तफ़्सीली रिवायत मौजूद है। यह रिवायत यहाँ नक़ल की जाती है—
“अब्दुलाह बिन अब्बास कहते हैं कि औरतों में सबसे पहले हाजरा ने कमरपट्ट बाँधा था ताकि सारा को उनके बारे में ख़बर न हो सके। फिर इब्राहीम हाजरा और उनके बच्चे इस्माईल को मक्का ले आए। उस वक़्त हाजरा इस्माईल को दूध पिलाती थी। इब्राहीम ने उन दोनों को मस्जिद के पास एक बड़े दरख़्त के नीचे बिठा दिया, जहाँ ज़मज़म है। उस वक़्त मक्का में एक शख़्स भी मौजूद न था और न ही वहाँ पानी था।
इब्राहीम ने खजूर का एक थैला और पानी एक मश्क वहाँ रख दिया और ख़ुद वहाँ से रवाना हुए। हाजरा उनके पीछे निकली और कहा कि ऐ इब्राहीम ! हमें इस वादी में छोड़कर आप कहाँ जा रहे हैं, जहाँ न कोई इंसान है और न कोई और चीज़। हाजरा ने इब्राहीम से यह बात कई बार कही और इब्राहीम उनकी तरफ देखते न थे। हाजरा ने इब्राहीम से कहा कि क्या अल्लाह ने आपको इसका हुक्म दिया है। इब्राहीम ने कहा कि हाँ। हाजरा ने कहा— फिर तो अल्लाह हमें ज़ाया नहीं करेगा।
हाजरा लौट आई और इब्राहीम जाने लगे। यहाँ तक कि जब वह मक़ामे-सनीयह पर पहुँचे, जहाँ से वे दिखाई नहीं देते थे तो उन्होंने अपना रुख़ उधर किया, जहाँ काबा है और अपने दोनों हाथ उठाकर यह दुआ की कि ऐ हमारे रब ! मैंने अपनी औलाद को एक ऐसी वादी में बसाया है, जहाँ कुछ नहीं उगता। यहाँ तक कि आप दुआ करते हुए लफ़्ज़ यशकुरून तक पहुँचे।
(क़ुरान 14:37)
हाजरा इस्माईल को दूध पिलाती और मश्क में से पानी पीती। यहाँ तक कि जब मश्क का पानी खत्म हो गया तो वह प्यासी हुईं और उनके बेटे को भी प्यास लगी। उन्होंने बेटे की तरफ़ देखा तो वह प्यास से बेचैन था। बेटे की उस हालत को देखकर वह मजबूर होकर निकलीं। उन्होंने सबसे क़रीब पहाड़ सफ़ा को पाया। चुनाँचे वह पहाड़ पर चढ़ीं और वादी की तरफ़ देखने लगीं कि कोई शख़्स नज़र आ जाए, लेकिन वह किसी को न देख सकीं। वह सफ़ा से उतरीं। यहाँ तक कि जब वह वादी तक पहुँची तो अपने कुर्ते का एक हिस्सा उठाया, फिर वह थकावट से चूर इंसान की तरह दौड़ीं। वादी को पार करके वह मरवा पहाड़ पर आईं। उस पर खड़े होकर उन्होंने देखा तो कोई इंसान नज़र नहीं आया। इस तरह उन्होंने सफ़ा व मरवा के दरम्यान सात चक्कर लगाए।
अब्दुल्लाह बिन अब्बास कहते हैं कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया कि लोग उन दोनों के दरम्यान सई करते हैं। फिर वह मरवा पर चढ़ीं तो उन्होंने एक आवाज़ सुनी। वह अपने आपसे कहने लगीं कि चुप रह। फिर सुनना चाहा तो वही आवाज़ सुनी। उन्होंने कहा कि तूने अपनी आवाज़ मुझे सुना दी तो इस वक़्त क्या हमारी मदद कर सकता है? देखा तो मक़ाम-ए-ज़मज़म के पास एक फ़रिश्ता है। जब फ़रिश्ते ने अपनी ऐड़ी या पंख ज़मीन पर मारा तो पानी निकल आया। हाजरा उसको हौज़ की तरह बनाने लगी और हाथ से उसके चरों तरफ़ मेंड़ बनाने लगीं। वह पानी चुल्लू से लेकर अपनी मश्क में भरतीं। वह जिस क़दर पानी भरतीं, चश्मा उतना ही ज़्यादा उबलता।
इब्ने-अब्बास कहते हैं कि रसूल अल्लाह ने फ़रमाया कि अल्लाह हाजरा पर रहम करे, अगर वह चुल्लू भर पानी नहीं लेतीं तो ज़मज़म एक बहता हुआ चश्मा होता। हाजरा ने पानी पिया और अपने बेटे को पिलाया। फ़रिश्ते ने हाजरा से कहा कि तुम ज़ाया होने का अंदेशा न करो। यह अल्लाह का घर है। यह बच्चा और इसका बाप, दोनों इस घर को बनाएँगे और अल्लाह अपने घरवालों को ज़ाया नहीं करता। उस वक़्त घर (काबा) टीले की तरह ऊँचा था। जब सैलाब आता तो दाएँ-बाएँ से गुज़र जाता। कुछ दिनों तक हाजरा ने उसी तरह ज़िंदगी गुज़ारी। यहाँ तक कि जुरहुम क़बीले के कुछ लोग या जुरहुम के घरवाले कदा के रास्ते से आ रहे थे। वे मक्का के निचले हिस्से में उतरे। उन्होंने वहाँ एक परिंदे को देखा, जो घूम रहा था। वे कहने लगे कि यह परिंदा तो पानी के ऊपर घूमता है। हम उस वादी में रहे हैं, लेकिन यहाँ तो पानी न था। उन्होंने एक या दो आदमी को ख़बर लेने के लिए वहाँ भेजा। उन्होंने वहाँ पानी को देखा तो वापस लौट गए और लोगों को पानी की ख़बर दी। इस तरह वे लोग भी वहाँ आए।
रसूलुल्लाह ने फ़रमाया कि हाजरा पानी के पास थीं। उन्होंने हाजरा से कहा कि क्या तुम हमें यहाँ ठहरने की इजाज़त देती हो। हाजरा ने कहा कि हाँ, लेकिन पानी पर तुम्हारा कोई हक़ नहीं। उन्होंने कहा कि ठीक है।
अब्दुलाह बिन अबास कहते हैं कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया कि हाजरा ख़ुद चाहती थीं कि यहाँ इंसान आबाद हों। उन लोगों ने यहाँ पर क़याम किया और अपने घरवालों को भी बुला भेजा। वे भी यहीं ठहरे। जब मक्का में कई घर बन गए और इस्माईल जवान हो गए और इस्माईल ने जुरहुम वालों से अरबी ज़बान सीख ली और जुरहुम के लोग उनसे मुहब्बत करने लगे तो उन्होंने अपनी एक लड़की से उनका निकाह कर दिया।
इसी दरम्यान हाजरा का इंतक़ाल हो गया। जब इस्माईल का निकाह हो चुका तो इब्राहीम अपनी औलाद को देखने आए। उन्होंने वहाँ इस्माईल को नहीं पाया। चुनाँचे उनकी बीवी से उनके बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह हमारे लिए रिज़्क़ की तलाश में निकले हैं। इब्राहीम ने उससे उनकी गुज़र-बसर और हालात के बारे में पूछा तो उसने कहा कि हम बड़ी तकलीफ़ में हैं। हम बहुत ज़्यादा तंगी में हैं। उसने इब्राहीम से शिकायत की। इब्राहीम ने कहा कि जब तुम्हारे शौहर आए तो उनको मेरा सलाम कहना और उनसे यह भी कहना कि वह अपने दरवाज़े की चौखट बदल दें।
जब इस्माईल आए तो उन्होंने कुछ महसूस कर लिया था। उन्होंने कहा की क्या तुम्हारे पास कोई आया था। उसने कहा कि हाँ, एक बूढ़ा शख़्स इस-इस सूरत का आया था। उन्होंने आपके बारे में पूछा। मैंने उनको बताया। उन्होंने मुझसे पूछा कि हमारी गुज़र कैसे होती है तो मैंने कहा कि बड़ी तकलीफ़ और तंगी से। इस्माईल ने कहा कि क्या उन्होंने तुमसे और कुछ कहा है। तब उसने कहा कि हाँ, उन्होंने मुझसे आपको सलाम कहने के लिए कहा है और यह भी कहा है कि अपने दरवाज़े की चौखट बदल दो। इस्माईल ने कहा कि वह मेरे बाप थे। उन्होंने मुझे हुक्म दिया है कि मैं तुम्हें छोड़ दूँ। तुम अपने घरवालों के पास चली जाओ। इस्माईल ने उसे तलाक़ दे दिया और जुरहुम की दूसरी औरत से उन्होंने निकाह कर लिया।
इब्राहीम अपने मुल्क में ठहरे रहे, जिस क़दर अल्लाह ने चाहा। उसके बाद इब्राहीम इस्माईल के यहाँ आए तो एक बार फिर उन्होंने उनको नहीं पाया। वह इस्माईल की बीवी के पास आए और उससे इस्माईल के बारे में पूछा। उसने कहा कि वह हमारे लिए रिज़्क़ की तलाश में निकले हैं। इब्राहीम ने पूछा कि तुम लोग कैसे हो तो उसने कहा की हम लोग ख़ैरियत से हैं, और कुशादगी की हालत में हैं। उसने अल्लाह की तारीफ़ की। इब्राहीम ने पूछा कि तुम्हारा खाना क्या है। उसने कहा गोश्त। इब्राहीम ने पूछा कि तुम क्या पीते हो तो उसने बताया पानी। तब इब्राहीम ने दुआ की कि ऐ अल्लाह! तू उनके गोश्त और पानी में बरकत दे।
रसूलुल्लाह ने फ़रमाया किउस वक़्त मक्का में अनाज न था और अगर वहाँ अनाज होता तो इब्राहीम उसमें भी बरकत की दुआ करते। मक्का के अलावा किसी दूसरे मुल्क के लोग अगर गोश्त और पानी पर गुज़र करें तो वह उन्हें मुवाफ़िक (suit) न आए। इब्राहीम ने कहा कि जब तुम्हारे शौहर आएँ तो तुम उनको मेरा सलाम कहना, और मेरी तरफ़ से उनको यह हुक्म देना कि वह अपने दरवाज़े की चौखट को बाक़ी रखें।
जब इस्माईल आए तो उन्होंने पूछा कि क्या तुम्हारे पास कोई शख़्स आया था। उसने का कि हाँ हमारे पास एक अच्छी सूरत के बुज़ुर्ग आए थे, और उसने आने वाले की तारीफ़ की। उन्होंने मुझसे आपके बारे में पूछा तो मैंने उन्हें बताया। फिर उन्होंने मुझसे हमारी गुज़र-बसर के बारे में पूछा। मैंने उन्हें बताया कि हम ख़ैरियत से हैं। इस्माईल ने कहा कि क्या उन्होंने तुमसे कुछ और भी कहा है. तो उसने कहा कि हाँ, उन्होंने आपको सलाम कहा है और आपको हुक्म दिया है कि आप अपने दरवाज़े की चौखट को बाक़ी रखें। तब इस्माईल ने बताया कि वह मेरे बाप थे और तुम चौखट हो। उन्होंने मुझे हुक्म दिया है कि मैं तुम्हें अपने पास बाक़ी रखूँ।
फिर इब्राहीम अपने मुल्क में ठहरे रहे, जब तक अल्लाह ने चाहा। उसके बाद वह आए उस वक़्त इस्माईल ज़मज़म के क़रीब एक दरख़्त के नीचे बैठे हुए अपने तीर दुरुस्त कर रहे थे। जब इस्माईल ने इब्राहीम को देखा तो वह खड़े हो गए और फिर उन्होंने वही किया, जो एक बाप अपने बेटे से और एक बेटा अपने बाप से करता है। इब्राहीम ने कहा कि ऐ इस्माईल, अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है। इस्माईल ने कहा की फिर जो आप के रब ने हुक्म दिया है उसे कर डालिये। इब्राहीम ने कहा कि क्या तुम मेरी मदद करोगे। इस्माईल ने कहा कि मैं आपकी मदद करूँगा। इब्राहीम ने कहा कि अल्लाह ने मुझको यह हुक्म दिया है कि मैं यहाँ एक घर बनाऊँ, फिर इब्राहीम ने उसके गिर्द बुलंद टीले की तरफ़ इशारा किया। उस वक़्त उन दोनों ने घर की बुनियाद उठाई। इस्माईल पत्थर लाते थे और इब्राहीम तामीर करते थे। यहाँ तक कि जब दीवार ऊँची हो गई तो इस्माईल एक पत्थर लाए और उसको वहाँ रख दिया। इब्राहीम उस पत्थर पर खड़े होकर तामीर करते थे और इस्माईल उनको पत्थर देते थे और वे दोनों कहते थे— ऐ हमारे रब ! तू हमारी तरफ़ से यह क़बूल कर, बेशक तू बहुत ज़्यादा सुनने वाला और बहुत ज़्यादा जानने वाला है। पस वे दोनों तामीर करते और उस घर के इर्द-गिर्द यह कहते हुए चक्कर लगाते कि ऐ हमारे रब, तू हमारी तरफ से यह क़ुबूल कर। बेशक तू बहुत ज़ियादा सुनने वाला और बहुत ज़ियादा जानने वाला है।”
(सही बुख़ारी, हदीस नंबर 3364)