दावत का बाग़
‘किसानों को भला लगता है’ के अलफ़ाज़ में एक तारीख़ी पसमंज़र की तरफ़ इशारा है। रसूल और अस्हाबे-रसूल के पहले की जो दावती तारीख़ है, उसमें बार-बार ऐसा हुआ कि ख़ुदा के दाइयों ने दावत का बीज डाला, लेकिन वह बढ़कर एक शादाब दरख़्त न बन सका। यह वाक़या पहली बार अस्हाबे-रसूल के ज़रिये पेश आया। दावत के अमल में ये इरतक़ा सारे ज़मीन और आसमान के लिए बेपनाह ख़ुशी की वजह थी। जो दावत-ए-तौहीद को एक शादाब बाग़ की सूरत में देखने के लिए हज़ारों साल से उसका इंतज़ार कर रहे थे।
Book :