इख़्तिलाफ़ को उज़्र बनाना

दावती मिशन के लिए इत्तिहाद बहुत ज़रूरी है। इत्तिहाद का मतलब है— इख़्तिलाफ़ के बावजूद मुत्तहिद रहना। आपको हमेशा यह याद रखना चाहिए—

“इत्तिहाद हमारी ताक़त है और इख़्तिलाफ़ हमारी कमज़ोरी।”

United we stand, divided we fall

आप इस हदीस-ए-रसूल को अपने ज़हन में हमेशा ताज़ा रखें—

“यानी जो शख़्स इज्तिमाइयत से अलग हुआ, वह आग में जाएगा।”

(मुसतदरक अल-हाकिम, हदीस नं०, 391)

यह हदीस बहुत अहम है। इस हदीस में इख़्तिलाफ़ से मुराद नफ़्सियात-ए-इख़्तिलाफ़ है, न कि गिरोही इख़्तिलाफ़ यानी असल बुराई अमलन किसी गिरोह से कटना नहीं है, बल्कि इख़्तिलाफ़ बरपा करके इत्तिहाद को टुकड़े टुकड़े करना है। इसलिए आपको यह समझना होगा कि आप कभी इख़्तिलाफ़ात को उज़्र (excuse) बनाकर दावती मिशन से अलग न हों। ख़ुदा इस मामले में आपके किसी भी उज़्र को क़बूल नहीं करेगा।

Maulana Wahiduddin Khan
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