हर घर दावती मरकज़

हज़रत मूसा का ज़माना पंद्रहवीं सदी क़ब्ल मसीह का ज़माना है यानी अब से तक़रीबन साढ़े तीन हज़ार साल पहले का ज़माना। वे क़दीम मिस्र में पैग़ंबर बनाए गए। उस वक़्त मिस्र में बनी इस्राईल चंद लाख की तादाद में आबाद थे। वे गोया उस ज़माने के अहले-ईमान थे। उस वक़्त बनी इस्राईल को एक हुक्म दिया गया, जो क़ुरआन में इन अल्फ़ाज़ में आया है— “तुम अपने घरों को क़िब्ला बना लो।”

क़िब्ला उस मरकज़ी जगह को कहते हैं, जिसकी तरफ़ तवज्जह की जाए, जो लोगों के लिए फ़ोकस ऑफ़ अटेंशन (focus of attention) या सेंटर ऑफ़ अटेंशन (centre of attention) की हैसियत रखता हो। उस वक़्त के हालात में इसका मतलब यह था कि अपने घरों को अपने लिए दावती और तरबियती अमल का मरकज़ बना लो। यह एक तदबीर थी और यह तदबीर हर ज़माने में और हर मुक़ाम पर मत्लूब है। मौजूदा ज़माने में भी हमें दावती अमल को मुस्तहकम करने के लिए यही काम करना है।

मौजूदा ज़माने में इसकी बेहतरीन सूरत यह है कि हर शख़्स अपने-अपने मुक़ाम पर लाइब्रेरी के नाम से एक जगह बनाए, चाहे अपने घर के अंदर या अपने घर के बाहर; यहाँ तक कि अगर किसी के पास एक कमरे का घर हो, तब भी वह उसके एक हिस्से में किताबों की अलमारी खड़ी करके उसे लाइब्रेरी की सूरत दे सकता है। यह लाइब्रेरी अमलन दावत और तरबियत का एक मरकज़ होगी। ज़रूरत है कि इस तरह के मराकिज़-ए-दावत हर जगह क़ायम किए जाएँ।

Maulana Wahiduddin Khan
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