दावत और दुआ

दावत का एक अहम फार्मूला यह है— जहाँ दावत के मौक़े हों, वहाँ दावा वर्क (dawah work) और जहाँ बज़ाहिर दावत के मौक़े दिखाई न दें, वहाँ दुआ वर्क (dua work)।

दुआ का ताल्लुक़ जिस तरह दूसरी तमाम चीज़ों से है, उसी तरह इसका ताल्लुक़ दावत से भी है। हक़ीक़त यह है कि दुआ दावत के लिए लाज़िमी जुज़ की हैसियत रखती है। दुआ के बग़ैर दावत का काम मुअस्सिर तौर पर अंजाम नहीं दिया जा सकता। दुआ एक दाअी का सबसे बड़ा सरमाया है।

दाअी अपने मदऊ का बहुत ज़्यादा ख़ैरख़्वाह होता है। ख़ैरख़्वाही का यह जज़्बा उसे मजबूर करता है कि वह अपने मदऊ के हक़ में बराबर दुआ करता रहे। दावत को क़बूल करना हमेशा अल्लाह की तौफ़ीक़ से होता है। अल्लाह की तौफ़ीक़ ही से किसी इंसान का दिल हक़ को क़बूल करने के लिए खुलता है। अल्लाह की तौफ़ीक़ ही से किसी की कंडीशनिंग टूटती है। अल्लाह की तौफ़ीक़ ही से यह होता है कि कोई शख़्स दावत पर संजीदगी से ग़ौर करे। यह तमाम चीज़ें तक़ाज़ा करती हैं कि दाअी हमेशा अपने मदऊ के लिए अल्लाह से दुआ करता रहे।

Maulana Wahiduddin Khan
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