शेर से सीख

जिम कॉर्बेट को शेर पर अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता है। भारत में उनके नाम पर एक पशु उद्यान बना हुआ है। जिम कॉर्बेट ने लिखा है

“कोई भी शेर किसी इंसान पर तब तक हमला नहीं करता, जब तक उसे उकसाया न जाए।”

जो लोग जंगलों में रहते हैं, वे जानते हैं कि अगर उनका सामना शेर से हो जाए, तो इसमें ख़तरे की कोई बात नहीं है, क्योंकि शेर अपना रास्ता चलता हुआ गुज़र जाएगा, अगर उसे छेड़ा न जाए।

सच तो यह है कि शेर स्वभाव से आदमख़ोर जानवर नहीं हैं। शेर के लिए ‘आदमख़ोर’ शब्द केवल संयोगवश ही सही है। शेर जन्म से नरभक्षी नहीं होता, बल्कि कुछ अज्ञानी लोगों की हरकतें शेर को आदमख़ोर बना देती हैं। जो लोग शेर को नरभक्षी में बदल देते हैं, वे अकसर अनुभवहीन शिकारी होते हैं, जो पर्याप्त विश्वास के बिना शेर पर अपने कारतूस ख़ाली कर देते हैं। वे शेर को मारने के शौक़ में शेर पर गोली चला देते हैं, लेकिन कौशल की कमी के कारण उनकी गोली सही निशाने पर नहीं लगती और उचटती हुई निकल जाती है। शेर थोड़ा घायल होता है, लेकिन मरता नहीं है। इस प्रकार का घाव खाने वाला शेर इंसान का दुश्मन बन जाता है। वह जहाँ भी इंसान को  देखता है, उसे अपना शत्रु समझ लेता है और उस पर हमला कर उसे मार डालता है। यही हाल अकसर जंगली जानवरों के साथ होता है।

इस उदाहरण में हमारे लिए दो बड़े सबक़ हैं। एक तो यह कि पहले से ही किसी को अपना ‘दुश्मन’ मान लेना दुरुस्त नहीं है, यहाँ तक कि वहशी इंसान को भी नहीं। एक व्यक्ति उसी से शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता है, जिसे वह अपना दुश्मन मानता है। अगर हम ख़ुद को शत्रु के रूप में प्रदर्शित नहीं करेंगे, तो दूसरे भी हमारे साथ शत्रु जैसा व्यवहार नहीं करेंगे।

दूसरा सबक़ यह है कि बिना पर्याप्त तैयारी के कभी भी किसी के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। अगर आप अपने प्रतिद्वंद्वी पर ऐसी कार्रवाई करते हैं, जो पर्याप्त तैयारी के बिना की हो और इसलिए निर्णायक नहीं बन सकी है, तो ऐसा क़दम आपके प्रतिद्वंद्वी को पहले से ज़्यादा उत्तेजित करके आपकी समस्या को बदतर बना देगा।

प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकता की पूर्ति में लगा रहता है और अगर आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं, तो वासना की पूर्ति में। यह एक प्राकृतिक व्यवस्था है, जो लोगों को एक-दूसरे से दूर रखती है। दूसरों को मत छेड़ो, तो तुम दूसरों की क्रूरता से सुरक्षित रहोगे, क्योंकि यहाँ हर कोई अपने आपमें इतना व्यस्त है कि उसके पास दूसरों के ख़िलाफ़ सोचने का वक़्त ही नहीं।

Maulana Wahiduddin Khan
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