क़ुरआन में आदम के दो बेटों की एक घटना का वर्णन किया गया है। एक भाई ने ग़ुस्से में आकर दूसरे भाई की हत्या कर दी। किसी इंसान की हत्या का यह पहला मामला था। हत्यारे को समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने भाई के शव का क्या करे। उसी वक़्त ईश्वर ने एक कौआ भेजा। उसने एक मरे हुए कौए को उसके सामने ‘दफ़नाया’। उसने अपनी चोंच और पंजे से ज़मीन खोदी और मरे हुए कौए को अंदर रखकर मिट्टी से ढक दिया। यह देखकर हत्यारे ने कहा, “अफ़सोस है मुझ पर! मैं उस कौए जैसा भी न हो सका कि अपने भाई के शव को ज़मीन में छुपाने की योजना भी न बना सका।” यह घटना मानव-जाति के आरंभ की है। उस वक़्त से अब तक ईश्वर हमें हमारे जीवन के बारे में सिखाने के लिए जानवरों में से किसी जानवर को ‘भेजकर’ हमें हमारे जीवन के बारे में सबक़ देता है, लेकिन इंसान मुश्किल से ऐसा करता है कि वह ऐसी घटनाओं से सीख ले। यहाँ एक पक्षी की घटना उल्लेखित की जा रही है, जिसमें हमारे लिए बहुत बड़ी सीख है।
एक बार अबाबील चिड़िया ने छत की लकड़ी में एक घोंसला बनाया। घोंसला मिट्टी का था। नर और मादा, दोनों अपनी चोंच में थोड़ी गीली मिट्टी लाते और उससे घोंसला बनाते। लगातार मेहनत के बाद कुछ दिनों में घोंसला तैयार हो गया। अब अबाबील ने उसके अंदर अंडा दे दिया। एक दिन अबाबील का एक जोड़ा घोंसले में बैठा था। चार अंडे और दो पक्षियों का भार घोंसले के लिए बहुत ज़्यादा साबित हुआ और वह लकड़ी से छूटकर गिर गया। अंडे टूटकर बरबाद हो गए। उसके बाद देखने वालों ने देखा कि दोनों पक्षी पूरी छत में चारों तरफ़ उड़ रहे थे। वे छत की लकड़ियों में अपने अगले घोंसले के लिए ज़्यादा सुरक्षित जगह तलाश कर रहे थे। आख़िरकार उन्हें अपने लिए एक ऐसी जगह मिल गई, जो घोंसले को सँभाल सकती थी।
पहली बार अबाबीलों ने ख़ाली मिट्टी का घोंसला बनाया था। अब दूसरी बार उन्होंने जो मिट्टी लानी शुरू की, उसमें घास मिली हुई थी। पहले प्रयोग के बाद उन्होंने साफ़ गारे को अपर्याप्त पाया, इसलिए उन्होंने घास-मिश्रित घोल से घोंसला बनाना शुरू कर दिया मानो पहले अगर ख़ाली मिट्टी थी, तो अब घोंसले के लिए मज़बूत मिट्टी चुनी गई। परिणाम स्पष्ट था। दूसरा घोंसला ज़्यादा ठोस और जमा हुआ था। वह अपनी जगह पर बैठ गया और उसमें रखे अंडे सुरक्षित रहे, यहाँ तक कि उनमें से बच्चे निकल आए। बच्चे अपनी माँ के साथ उड़कर क्षितिज और हवा में ग़ायब हो गए। यह घटना ख़ुर्शीद अहमद बिस्मिल साहब (जन्म : 1947) के घर की है, जो थाना मंडी (राजौरी) के निवासी हैं। 19 सितंबर, 1979 को उन्होंने मुझे उक्त कमरा दिखाया और घटना बताई। अगर जानवर का प्रयास पहली बार विफल हो जाता है, तो दूसरे प्रयास से पहले वह यह मालूम करता है कि उसके प्रयास में क्या कमी थी, जिससे उसकी योजना विफल हो गई और फिर एक ज़्यादा सटीक योजना के तहत दूसरा निर्माण करता है, लेकिन हमारा ‘आशियाना’ गिरता रहता है और हमें कभी भी अपनी कमी का एहसास नहीं होता और हम ज़्यादा पाएदार निर्माण की योजना नहीं बनाते।