सबसे बड़ी समस्या 

अगर कहीं किसी जगह यह प्रश्न उठाया जाए कि आज इंसान की सबसे बड़ी समस्या क्या है तो इस पर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय होगी। अगर हम देखें तो किसी के अनुसार परमाणु हथियारों पर रोकथाम करना ही आज की बहुत बड़ी समस्या है, तो कोई संसार की बढ़ती हुई आबादी को आज की मूलभूत समस्या कहेगा, जबकि किसी और के अनुसार आज के दौर में होने वाली पैदावार और उसको सही ढंग से वितरित करना बड़ी समस्या है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि इस मुद्दे पर हमें अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय जानने को मिलेगी।

इस विषय पर विस्तार से अध्ययन करने के पश्चात यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इंसान अपने अस्तित्व को नहीं जान पाया। अगर वह अपने आपको पहचानता तो सबकी राय एक ही होती और वह कहता कि आज इंसान की सबसे बड़ी मूलभूत समस्या यह है कि इंसान अपनी वास्तविकता को भूल गया है। वह इस सच्चाई से अनजान है कि उसे एक दिन मरना है और मरने के बाद अपने रचयिता के पास हिसाब-किताब के लिए प्रस्तुत होना है। इस प्रकार अगर हम जीवन की वास्तविकता को अच्छी तरह समझ लें तो हम आज के संसार को नहीं, बल्कि आख़िरत को मूल समस्या का नाम देंगे।  

वर्तमान संसार के अधिकतर लोग ईश्वर और परलोक पर विश्वास करते हैं। ऐसा नहीं है कि वे इससे सहमत नहीं, लेकिन उनके दैनिक जीवन और आचरण से कहीं नहीं झलकता कि वे इसे व्यवहार में लाते हों, जबकि इस दौर के इंसान का उद्देश्य केवल यही है कि वह अपने वर्तमान जीवन को किस प्रकार सफल बनाए। अगर हमारे वैज्ञानिक किसी दिन यह घोषणा कर दें कि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति समाप्त हो गई है और वह 6 हज़ार मील प्रति घंटे की गति से सूर्य की ओर निरंतर बढ़ रही है, तो संपूर्ण संसार में हाहाकार मच जाएगा, क्योंकि इस प्रकार की सूचना का अर्थ है चंद घंटों में पृथ्वी पर बसे लोगों की मृत्यु। हालाँकि यह संसार हर पल उससे भी अधिक बड़े ख़तरे में उलझा हुआ है।  

यह ख़तरा क्या है? यह ख़तरा क़यामत का ख़तरा है, जो धरती और आकाश की रचना के दिन से ही उसके लिए तय हो चुका है। जिसकी ओर हम तेज़ी से बढ़े चले जा रहे हैं। वैसे देखा जाए तो इस नियम की सच्चाई के बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन वास्तव में इस बारे में गंभीरता से सोच-विचार करने वालों की संख्या कम है।  

अगर आप शाम के समय किसी भरे हुए बाज़ार में खड़े हो जाएँ और वहाँ की चहल-पहल को देखें कि लोग किसलिए भाग-दौड़ कर रहे हैं तो आपके सामने यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि आज का इंसान किसको अपना उद्देश्य बनाए हुए है।  

ज़रा सोचिए कि भरे बाज़ार में बसों और कारों का आना-जाना किसलिए हो रहा है, दुकानदारों ने अपनी दुकानें किसलिए सजाई हुई हैं, इंसानों की भीड़ कहाँ आती-जाती दिखाई देती है, लोगों की बातचीत का विषय क्या है और एक-दूसरे से मुलाक़ात किस उद्देश्य से हो रही है, किन चीज़ों में लोग रुचि ले रहे हैं और उनकी योग्यता का झुकाव किस ओर है और जेबों के रुपये किन-किन चीज़ों पर ख़र्च हो रहे हैं। जो ख़ुश ख़ुश  हैं, वे क्या पाकर ख़ुश  हैं और जो निराश हैं, उन्हें किस चीज़ की कमी ने निराश कर  दिया है। लोग अपने घरों से क्या पाने की कामना लेकर निकलते हैं और क्या लेकर वापस जाना चाहते हैं

इन तथ्यों के आधार पर अगर आप लोगों की बातचीत के विषय और उनके रहन-सहन के ढंग पर सोच-विचार करें तो आपको यह स्पष्ट हो जाएगा कि आज इंसान क्या प्राप्त करना चाहता है।      

वास्तविकता यह है कि बाज़ारों की चहल-पहल और भरी सड़कों पर लोगों की लगातार आवाजाही पुकार-पुकारकर कह रही है कि आज का इंसान अपनी इच्छाओं के पीछे दौड़ रहा है। वह परलोक को नहीं, बल्कि केवल आज के संसार को ही प्राप्त करना चाहता है। अगर उसकी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति हो रही है तो वह बहुत ख़ुश  है, नहीं तो दुखि  

आज के इंसान की ख़ुशी  केवल सांसारिक इच्छाओं पर ही निर्भर करती है। आज की आवश्यकताएँ, आज का आराम, आज की इज़्ज़त, आज के ही अवसरों को प्राप्त कर लेने का नाम लोगों की दृष्टि में सफलता है और इनको प्राप्त कर पाने की स्थिति का नाम असफलता। यही वह चीज़ है, जिसके लिए सारा इंसानी क़ाफ़िला आगे बढ़ा चला जा रहा है। किसी भी आदमी को आने वाले समय की चिंता नहीं है। हर आदमी बस आज की धुन में दीवाना हो रहा है।  

यह समस्या केवल बड़े-बड़े नगरों की ही नहीं है, बल्कि जहाँ भी चंद लोग रहते हैं, उन सबकी हालत भी ऐसी ही है। आज जिस किसी पर भी नज़र डालें, चाहे वह पुरुष हो या महिला, अमीर हो या ग़रीब, बूढ़ा हो या जवान, शिक्षित हो या अशिक्षित, शहरी हो या देहाती, यहाँ तक कि धार्मिक हो या अधार्मिक सब एक ही दिशा की ओर चले जा रहे हैं।  

आज इंसान की सबसे बड़ी इच्छा यही है कि वह संसार में जितना कुछ प्राप्त कर सकता है, प्राप्त कर ले। इसी को वह अपने लिए आवश्यक कार्य समझता है और इसी की पूर्ति के लिए अपना मूल्यवान समय और विशिष्ट योग्यताओं को उपयोग में लाता है और रात-दिन इसी की चिंता में लगा रहता है। इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि अगर ईमान और ज़मीर को बलिदान करके यह चीज़ मिले तो वह अपना ज़मीर और ईमान भी इस देवी पर बलिदान करने के लिए तत्पर रहेगा। वह संसार को प्राप्त करना चाहता है, फिर चाहे वह कोई भी रास्ता अपनाने से प्राप्त हो।  

हालाँकि इस प्रकार की हर सफलता केवल सांसारिक सफलता है और परलोक में वह बिल्कुल काम नहीं सकती। जो इंसान केवल अपने जीवन को सँवारने की चिंता में है और परलोक की ओर से लापरवाह है, उसका उदाहरण उस इंसान की तरह है, जो अपनी जवानी में अपने बुढ़ापे के लिए संग्रह नहीं करता। यहाँ तक कि जब उसकी हिम्मत जवाब दे जाती है और कार्य करने पर मजबूर करती है तो उसको पता चलता है कि अब उसका कोई ठिकाना नहीं रहा।  

वह देखता है कि मेरे पास मकान नहीं है, लेकिन वह अपना मकान नहीं बना सकता। वह देखता है कि सर्दी-गर्मी से बचने के लिए उसके पास कपड़े आदि भी नहीं हैं, लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह अपने लिए मकान, खाने-पीने और कपड़े आदि के लिए ये सारे साधन जुटा सके तो वह बहुत निराश और उदास होकर  किसी पुरानी दीवार के नीचे चिथड़ों में लिपटा हताश पड़ा रहता है। इसका परिणाम यह निकलता है कि उस पर कुत्ते भौंकते हैं, बच्चे पत्थर मारते हैं और हर आदमी उस पर उँगली उठाता है।  

आए दिन हम अपनी आँखों के सामने इस प्रकार के दृश्य देखते रहते हैं, जिससे एक हल्का-सा अनुमान यह हो सकता है कि परलोक की कमाई करने वालों के लिए परलोक का जीवन कैसा होगा। इसके बाद भी हमारे अंदर कोई खलबली पैदा नहीं होती, फिर भी हम केवल आज की उधेड़बुन में व्यस्त हैं और कल की कोई चिंता नहीं करते।         

लड़ाई के दौरान जब हवाई हमले का सायरन बजता है और अपनी डरावनी आवाज़ में यह घोषणा करता है कि दुश्मन के हवाई जहाज़ आग की बारिश करने के लिए बमों को लिये हुए चले रहे हैं और कुछ ही पलों में सारा शहर आग और धुएँ की चपेट में जाएगा, तो इतना सुनते ही एकाएक तनिक देर किए बिना ही हर आदमी तुरंत निकट के सुरक्षित स्थानों की ओर दौड़ पड़ता है और पल भर में ही बहुत आबाद रहने वाली सड़कें बिल्कुल सुनसान हो जाती हैं। जो इंसान ऐसा करे, उसके लिए यह कहा जाएगा कि वह पागल है या उसकी दिमाग़ी हालत ठीक नहीं है। 

यह तो छोटे-मोटे सांसारिक ख़तरे हैं, जबकि इससे भी कहीं अधिक बड़ा ख़तरा एक और है जिसके बारे में ब्रह्मांड के रचयिता की ओर से चेताया गया है। ईश्वर ने अपने संदेष्टाओं (Prophets) के माध्यम से यह संदेश भेजे हैं कि लोगो! मेरी इबादत करो। एक-दूसरे के प्रति जो ज़िम्मेदारी है, उसे पूरा करो और मेरे आदेश के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करो। जो ऐसा नहीं करेगा, मैं उसको कठोर दंड दूँगा जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकता। यह एक ऐसा अविरल (Continous) दंड होगा, जिसमें वह सदैव तड़पता रहेगा और उससे निकल सकेगा। 

इस घोषणा को हर कान ने सुना है और हर ज़ुबान किसी--किसी रूप में इसको स्वीकार भी करती है, लेकिन लोगों की हालत देखिए तो ऐसा प्रतीत होगा कि जैसे यह कोई बात ही नहीं है। सांसारिक लाभों को प्राप्त करने के लिए इंसान वह सब कार्य कर रहा है, जो उसे बिल्कुल नहीं करने चाहिए, लेकिन देखा जाए तो लोगों का क़ाफ़िला बहुत तेज़ी से उस रास्ते पर चला जा रहा है, जिधर जाने से उसे रोका गया है। 

जब फ़ौजी हैडक़्वार्टर का सायरन बजता है तो सभी लोग अपनी सुरक्षा के लिए तुरंत दौड़ पड़ते हैं, जबकि ईश्वर की ओर से जिस ख़तरे की घोषणा की गई है, उससे किसी को भी कोई समस्या नहीं होती। लोग उस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं देते। इसका कारण क्या है? इसका कारण यह है कि फ़ौजी हैडक़्वार्टर का सायरन जिस ख़तरे की घोषणा करता है, उसका संबंध आज के संसार से है जिसे आदमी स्वयं अपनी आँखों से देखता है और उसके परिणाम को तुरंत अनुभव कर लेता है, जबकि ईश्वर की ओर से जिस ख़तरे के बारे में सतर्क किया गया है, वह मरने के बाद हमारे सामने आएगा।  

हमारे और उसके बीच खड़ी मृत्यु की दीवार को हम अपनी आँखों से नहीं देख पाते और ही उसके हवाई जहाज़ों, बमों उसकी आग और धुएँ की बारिश का अनुमान लगा पाते हैं, क्योंकि यह सब कुछ अदृश्य (Invisible) है।  

हमले के सायरन का तो लोग तुरंत ही विश्वास कर लेते हैं, लेकिन ईश्वरीय प्रकोप की सूचना मिलने के बाद भी हमारी अंतरात्मा में कोई उथल-पुथल नहीं मचती और कोई ऐसा विश्वास पैदा नहीं होता, जो कर्म के लिए बेचैन कर दे।  

एक बात यह भी गहराई से सोचने वाली है कि चीज़ों को देखने के लिए ईश्वर ने केवल हमें दो ही आँखें नहीं दी हैं, बल्कि इसके अलावा भी हमारे पास एक और आँख है, जो बहुत दूर तक और छुपी हुई वास्तविकता को भी देख सकती है। यह तीसरी आँख है बुद्धिनेत्र। इसे लोगों की नासमझी कह लीजिए या अविश्वास कि वे इस तीसरी आँख का सही इस्तेमाल नहीं करते। वे सामने जो कुछ भी देखते हैं, बस यही समझते हैं कि यही सच है। हालाँकि अगर मस्तिष्क से सोच-समझकर कार्य किया जाए तो पता चलेगा कि जो चीज़ हमारी आँखों के सामने है, इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण वह अदृश्य चीज़ है, जो कि हमारी आँखों के सामने नहीं है। 

अगर यह प्रश्न किया जाए कि इस संसार में सबसे बड़ी वास्तविकता कौन-सी है, जिससे सारी मानवजाति सहमत है तो सबका एक ही उत्तर होगा मृत्यु। मृत्यु ही एक ऐसी वास्तविकता है, जिसे हर इंसान स्वीकार करता है। हममें से हर आदमी जानता है कि किसी भी समय उसकी मृत्यु हो सकती है, लेकिन जब वह मृत्यु की कल्पना करता है तो वह इतना ही सोचता है कि मेरे मरने के बाद मेरे बच्चों का क्या होगा। जबकि मरने से पहले तो केवल वह अपने जीवन के बारे में चिंतित  रहता है।  

बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए वह अपना संपूर्ण जीवन लगा देता है, पर जो भविष्य उसके सामने आने वाला है, उसको सुधारने के लिए वह कोई प्रयास नहीं करता। जैसाकि उसके सामने मरने के बाद केवल उसके बच्चों का अस्तित्व शेष रहेगा, स्वयं उसका कुछ नहीं, जिसके लिए उसे तैयारी करने की आवश्यकता हो।  

लोगों की इस प्रकार की सोच से यह पता चलता है कि शायद उन्हें इस बारे में पता नहीं है कि मृत्यु के पश्चात भी एक और जीवन है, जबकि वास्तविक जीवन मृत्यु के पश्चात ही आरंभ होता है। अगर उन्हें इस बात का विश्वास होता कि मरकर जब वे क़ब्र में दफ़न होते हैं तो वे सच में दफ़न नहीं होते, बल्कि एक दूसरे संसार में भेज दिए जाते हैं। तब वे बच्चों के भविष्य के बारे में चिंतित होने से पहले यह सोचते कि मरने के बाद मेरा परिणाम क्या होगा। वास्तविकता यह है कि संसार के अधिकतर लोग, चाहे वे धार्मिक हों या अधार्मिक, इस बात पर विश्वास नहीं रखते कि मरने के बाद वे एक नया जीवन प्राप्त कर सकते हैं। एक ऐसा जीवन जो वर्तमान जीवन से अधिक महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ है।  

मृत्यु के पश्चात आने वाले जीवन के बारे में संदेह दो कारणों से पैदा होता है। एक यह कि हर इंसान जब मरकर मिट्टी में मिल जाता है तो हमारी समझ में यह नहीं आता कि वह दोबारा किस प्रकार जीवन पाएगा और दूसरा कारण यह कि मृत्यु के पश्चात का संसार हमें दिखाई नहीं देता। आज के संसार को तो हर आदमी अपनी आँखों से देख रहा है, जबकि उसके पश्चात के संसार को अब तक किसी ने नहीं देखा है। इसलिए हमें विश्वास नहीं होता कि इस जीवन के पश्चात भी कोई दूसरा जीवन हो सकता है। आइए, अब इन्हीं दोनों सवालों पर विचार करते हैं। 

Maulana Wahiduddin Khan
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