दूसरा संसार
अब इस प्रश्न पर सोच-विचार कीजिए कि दूसरा जीवन कैसा होगा। ईश्वर के संदेष्टा (Prophet) कहते हैं कि वहाँ स्वर्ग और नरक है। हर आदमी जिसकी मृत्यु होती है, वह इनमें से किसी एक में भेज दिया जाता है। जो इंसान आज के संसार में ईश्वर का आज्ञाकारी होगा और उसके बताए हुए रास्ते पर चलते हुए अपना जीवन व्यतीत करेगा, उसे स्वर्ग के विश्रामालय में जगह मिलेगी और जो अवज्ञाकारी व दुश्चरित्र होगा, उसे नरक की यातनाएँ झेलनी पड़ेंगी।
इस बात को समझने के लिए इस सच्चाई पर ध्यान देना होगा कि इंसान जो भी कार्य करता है, उसके दो पहलू होते हैं। कुछ कार्य और घटनाएँ ऐसी होती हैं, जो साधारणतः अनजाने में हो जाती हैं और दूसरी वह, जो किसी विशेष प्रयोजन (Intent) से की जाएँ। पहले पहलू को स्वाभाविक और दूसरे को शिष्टाचार संबंधी कहेंगे यानी जो प्रयोजन से किया गया हो।
एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाएगी—
अगर पेड़ पर कोई पत्थर अटका हुआ हो और आप उसके नीचे से गुज़र रहे हों, फिर अचानक वह पत्थर आपके ऊपर गिर पड़े और आपका सिर फूट जाए तो इस स्थिति में आप उस पेड़ से झगड़ा नहीं करेंगे, बल्कि शांति से अपना सिर पकड़े हुए घर चले जाएँगे। इसके विपरीत अगर कोई आदमी जानबूझकर आपको पत्थर मारे, जिससे आप घायल हो जाएँ तो आप उस पर बरस पड़ेंगे और चाहेंगे कि आप भी उसका सिर तोड़ डालें, जिस प्रकार उसने आपको चोट पहुँचाई है।
पेड़ और इंसान में यह अंतर क्यों है? क्यों आप पेड़ से बदला नहीं लेते और इंसान से बदला लेना चाहते हैं? इसका कारण केवल यह है कि पेड़ में सोचने-विचारने की शक्ति नहीं है, जबकि यह शक्ति इंसान के पास है। इस प्रकार पेड़ का व्यवहार केवल घटनात्मक प्रकृति का है, जबकि इंसान का घटनात्मक और शिष्टाचारी दोनों है।
इससे पता चलता है कि इंसान के व्यवहार करने के दो पहलू हैं। एक यह कि उसके कारण कोई घटना घटी और दूसरा यह कि वह कार्य सही था या ग़लत, सही तरीक़े से किया गया था या ग़लत तरीक़े से, उसको करना चाहिए था या नहीं। जहाँ तक उसके कार्य के पहले पहलू का संबंध है तो उसका परिणाम तुरंत इसी संसार में सामने आ जाता है, लेकिन दूसरे पहलू का परिणाम इस संसार में सामने नहीं आता और अगर कभी आता भी है तो बहुत साधारण रूप में।
जिस आदमी ने आपको पत्थर मारा, उसके कार्य का यह परिणाम तो तुरंत ही प्रकट हो गया कि आपका सिर फूट गया, लेकिन उसके कर्म का दूसरा पहलू कि उसने अपनी शक्ति का ग़लत प्रयोग किया, उसका परिणाम प्रकट होना आवश्यक नहीं है। उसने चाहा था कि सिर फोड़े तो सिर फूट गया। उसने चाहा था कि एक ग़लत कार्य करे, लेकिन उसके इस दूसरे प्रयोजन का कोई परिणाम हमारे सामने नहीं आया। परिणाम नाम है इंसानी इरादे का बाहर प्रकट हो जाना। हम देखते हैं कि इंसानी इरादे का एक परिणाम— घटनात्मक परिणाम— सदैव प्रकट हो जाता है और फिर इंसानी इरादे का दूसरा परिणाम— शिष्टाचारी परिणाम— भी अवश्य प्रकट होना चाहिए।
परलोक इंसान द्वारा किए गए कार्यों के इसी दूसरे पहलू के परिणाम प्रकट होने की जगह है। जिस प्रकार आदमी के द्वारा किए गए कार्यों का पहलू कुछ घटनाओं को सामने दिखाता है, उसी प्रकार उसके व्यवहार का दूसरा पहलू कुछ दूसरी तरह की घटनाओं को पैदा करता है। अंतर केवल यह है कि पहली तरह की घटना को हम इसी संसार में अपनी आँखों से देख लेते हैं और दूसरी तरह की घटनाओं को हम मृत्यु के पश्चात देखेंगे।
हर आदमी जो इस संसार में अपना जीवन जी रहा है, वह अपने कार्यों से अपने लिए कोई-न-कोई परिणाम पैदा करने में व्यस्त है। चाहे वह बेकार बैठा हो या किसी कार्य में लगा हुआ हो, उसकी हर एक स्थिति उसके लिए एक अनुकूल या प्रतिकूल प्रतिकृया पैदा करती है। उसकी आदत और आचरण से लोग उसके बारे में एक दृष्टिकोण बना लेते हैं कि वह अपनी योग्यता का जिस प्रकार प्रयोग करता है, उसी के अनुसार उसके कार्य बनते या बिगड़ते हैं और वह अपने प्रयासों को जिस दिशा में लगाता है, उसी दिशा की चीज़ों पर उसका अधिकार स्थापित होता है।
इस प्रकार हर इंसान अपने चारों ओर अपना ही एक संसार बना रहा है, जो बिल्कुल उसके कार्यों के अनुसार है। यह आदमी के कर्म का एक पहलू है, जो वर्तमान संसार से संबंधित है। इसी प्रकार उसके कार्य की दूसरी वास्ताविक्ता सही या ग़लत कुछ भी हो, अपना एक परिणाम पैदा करती है । वह परिणाम दूसरे संसार में पैदा हो रहे हैं।
हमारे कर्म का शिष्टचारी पहलू पूरी तरह से अपने परिणाम को बना रहा है और उसी का नाम धार्मिक भाषा में स्वर्ग और नरक है। हममें से हर आदमी हर पल अपने लिए स्वर्ग और नरक का निर्माण कर रहा है। चूँकि इस संसार में इंसान को परीक्षा के प्रयोजन से ठहराया गया है, इसलिए स्वर्ग और नरक को उसकी दृष्टि से ओझल रखा गया है। जब परीक्षा का समय समाप्त हो जाएगा और क़यामत आएगी तो हर आदमी अपने बनाए हुए संसार में पहुँचा दिया जाएगा।
यहाँ एक प्रश्न यह पैदा होता है कि अगर हमारे किए हुए कार्यों का कोई शिष्टाचारी परिणाम है तो हमें वह दिखाई क्यों नहीं देता। उदाहरण के तौर पर— मकान बनाना एक कार्य है, जिसका एक परिणाम यह है कि मकान बनकर तैयार हो जाए। यह परिणाम प्रकट होता है और उसे हम अपनी आँखों से देखते हैं, लेकिन इस कर्म का पहलू यह है कि यह उचित तरीक़े से बनाया गया है या अनुचित तरीक़े से। यह भी अगर कोई परिणाम पैदा करता है तो वह कहाँ है? क्या ऐसा भी कोई परिणाम है, जिसे देखा और छुआ न जा सकता हो?
इस प्रश्न का उत्तर कर्म की इन दोनों हैसियतों में उपस्थित है। कर्म का जो घटनात्मक पहलू है, उसे हर आदमी देखता है। यहाँ तक कि कैमरे की निर्जीव आँख भी स्पष्ट रूप से देख लेती है, लेकिन किसी कर्म का शिष्टाचारी पहलू दिखाई देने वाली चीज़ नहीं है, उसे केवल अनुभव किया जा सकता है, देखा नहीं जा सकता।
कर्म के दोनों पहलुओं का यह अंतर स्वयं संकेत कर रहा है कि दोनों के परिणाम किस प्रकार सामने आते हैं। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि कर्म की पहली हैसियत का परिणाम इसी संसार में नज़र आना चाहिए, जिसे हम अपनी आंखो से देख रहे हैं और कर्म की दूसरी हैसियत का परिणाम उस संसार में नज़र आएगा , जो हमारी आँखों से ओझल है। इसलिए जो कुछ भी है, यही दरअसल होना भी चाहिए था।
केवल यही बौद्धिक तौर पर खरी उतरने वाली बात नहीं है, बल्कि प्रकृति का नियम और क्रम हमें यह बताता है कि यहाँ दोनों प्रकार के परिणाम पाए जाते हैं। एक ऐसे भी, जिन्हें हम घटित होने के बाद जल्दी ही देख लें और दूसरे ऐसे भी हैं, जो हमारी आँखों को दिखाई नहीं देते, वह एक सच्चाई के रूप में अवश्य विद्यमान रहते हैं। ब्रह्मांड में ऐसे छुपे हुए परिणामों का विद्यमान होना स्पष्ट रूप से यह प्रकट करता है कि इसी प्रकार के दूसरे छुपे हुए परिणाम भी हो सकते हैं। ब्रह्मांड की बनावट अपने अंदर ऐसे ही परिणामों के होने को स्वीकार करती है।
उदाहरण के तौर पर— आवाज़ को ही लीजिए, आप यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि आवाज़ नाम है ऐसी तरंगों का, जिन्हें आँखों के माध्यम से नहीं देखा जा सकता। जब बोलने के लिए ज़ुबान से गतिविधि की जाती है तो उसकी गतिविधि से हवा में कुछ लहरें पैदा होती हैं। इन्हीं लहरों को हम आवाज़ कहते हैं।
आवाज़ एक प्रकार का अदृश्य चिह्न है, जो हमारी ज़ुबान के हिलने से हवा में पैदा होता है। जब भी कोई आदमी बोलता है तो उसकी आवाज़ लहरों के रूप में छप जाती है और सदैव के लिए शेष रहती है। यहाँ तक कि वैज्ञानिकों का विचार है कि अब से हज़ारों साल पहले किसी इंसान ने जो आवाज़ अपने मुँह से निकाली थी या जो भी बातचीत की थी, वह सब-का-सब अंदर तरंगों के रूप में विद्यमान है। हालाँकि आज हम उन आवाज़ों को नहीं देखते और न ही सुनते हैं, लेकिन अगर हमारे पास उनको पकड़ने वाले यंत्र हों तो किसी भी समय उनको ठीक-ठीक अपने पिछले रूप में दोहराया जा सकता है।
इस उदाहरण के माध्यम से हम दूसरे संसार के कार्यों को भली-भाँति समझ सकते हैं। जिस प्रकार हमारे चारों ओर हवा का आवरण है और हमारी हर आवाज़ मुँह से निकलते ही उस पर अंकित हो जाती है, जबकि न तो हम हवा को देखते हैं और न ही अपनी आवाज़ के निशानों को। ठीक उसी प्रकार संसार भी हमें चारों ओर से घेरे हुए है और हमारे संकल्प और प्रयोजनों को लगातार रिकॉर्ड करता जा रहा है। उसके परदे पर हमारे कार्यों के निशान अंकित हो रहे हैं, जो मृत्यु के पश्चात प्रकट हो जाएँगे।
अगर ग्रामोफ़ोन में चाबी भरी हुई हो और रिकॉर्ड उसके ऊपर घूम रहा हो तो सूई के रखते ही रिकॉर्ड की शांत तख़्ती अचानक इस प्रकार बोल पड़ती है, जैसे वह इसी की प्रतीक्षा में थी कि कब कोई उसके ऊपर सूई रखे और तब वह अपने अंदर की आवाज़ को निकालना आरंभ कर दे। इसी प्रकार सभी कार्यों के परिणाम का रिकॉर्ड तैयार हो रहा है और ब्रह्मांड के मालिक के आदेश के अनुसार रिकॉर्ड इस प्रकार हमारे सामने आ जाएगा कि उसे देखकर आदमी कह उठेगा—
“यह कैसी किताब है कि मेरा छोटा-बड़ा कोई कार्य ऐसा नहीं, जो उसने सुरक्षित न कर लिया हो।”