हक़ीक़त-पसंदाना क़दम, या छलांग
एक व्यक्ति ने एक दुकान खोली जिससे उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी हो जाती थीं। मगर उन्होंने अपने खर्चों में इज़ाफा कर लिया, जिससे मुश्किलें बढ़ गईं। उन्होंने बैंक से कर्ज़ लिया ताकि आमदनी बढ़ सके, लेकिन कर्ज़ ने उनकी समस्याएँ और बढ़ा दीं। यह उनके लिए एक छलांग साबित हुई, जो नतीजे के लिहाज़ से उलटी पड़ी। यदि वे अपने खर्चों पर काबू करते और धीरे-धीरे मेहनत कर तरक्की की कोशिश करते, तो कुछ सालों में कामयाब हो सकते थे। मगर अचानक तरक्की की कोशिश ने समस्या को हल करने के बजाय और बढ़ा दिया।
छलांग का यह तरीका जैसे व्यक्ति के लिए नुक़सानदायक है, वैसे ही यह कौमों के लिए भी हानिकारक साबित होता है। 2003 में इराक पर अमेरिका का हमला भी इसी तरह की छलांग थी। अमेरिका के लिए यह हमला उलटा साबित हुआ और उसके लिए कठिनाइयों का कारण बन गया। दो साल पहले, मैंने इसी विषय पर टाइम्स ऑफ इंडिया में एक इंटरव्यू में कहा था कि— "अमेरिका की यह आक्रामकता उसके लिए उलटा नतीजा साबित होगी।"
काम का सही तरीका यह है कि हकीकत पसंदाना (यथार्थवादी) योजना के साथ कदम उठाए जाएँ, न कि भावनाओं के अधीन जाकर छलांग लगाई जाए। समझदारी से किए गए काम हमेशा कामयाब होते हैं, जबकि भावनाओं में किए गए काम का परिणाम अक्सर असफलता होता है।