शादाबी लौट आई

दिल्ली में मेरी रहने की जगह के पास एक पेड़ है, जिसे मैं "स्पिरिचुअल ट्री" (आध्यात्मिक पेड़) कहता हूँ। इसके नीचे बैठकर मुझे शांति मिलती है।

मानसून से पहले यह पेड़ सूख गया था। बेजान तने की तरह लग रहा था, और मैंने सोचा कि शायद इसकी उम्र पूरी हो चुकी है और यह दोबारा हरा नहीं होगा। लेकिन मानसून आने के बाद इसमें फिर से हरियाली लौटने लगी। इसकी शाखाओं पर हरी पत्तियाँ निकलने लगीं, और अगस्त के अंत तक यह पूरी तरह से हरा-भरा हो गया।

यह एक प्रतीकात्मक रूप में इंसान के लिए एक सबक है। इंसान के शारीरिक जीवन के लिए भी यह ज़रूरी है कि उसे "पानी" मिलता रहे। जिस इंसान को इस पानी से वंचित कर दिया जाए, उसकी शख्सियत भी सूखे पेड़ जैसी हो जाएगी।

इंसानी जीवन के लिए यह जीवनदायी पानी अल्लाह की रहमत है। इंसान को चाहिए कि वह अल्लाह के साथ निरंतर आध्यात्मिक संबंध बनाए रखे। इसी संबंध से उसे जीवन्तता मिलेगी। अगर यह संबंध किसी कारणवश टूट जाए तो उसकी हालत सूखे पेड़ की तरह हो जाएगी।

अल्लाह से इस संबंध का माध्यम "ज़िक्र" (स्मरण) है। यह किसी विशेष दुआ का नाम नहीं है बल्कि यह अलग-अलग स्थितियों में उसे बार-बार याद करना है। जैसे इस पेड़ को देख कर हमने अल्लाह के चमत्कार को देखा और दिल से दुआ की: "हे अल्लाह, जिस तरह इस पेड़ को हरा किया है, वैसे ही मुझे भी जीवन्तता से भर दे।" ऐसी सोच के साथ जीने वाला इंसान हर चीज़ में अल्लाह के काम की झलक पाता है। वही समझदार है जो इस रब्बानी फैज़ (रहमत) को अपनी ज़िंदगी में अपनाता है।

क्रोध को त्याग दो

हज़रात अबू हुरैरा कहते हैं कि अल्लाह के रसूल की ख़िदमत में एक व्यक्ति आया और बोलाः मुझे उपदेश दीजिए। आपने फ़रमाया: “क्रोध को त्याग दे।” उसने दोबारा कहाः मुझे उपदेश दीजिए। आपने फिर फ़रमाया: “क्रोध को त्याग दे।” वह बार-बार अपना सवाल दोहराता रहा और आप बार-बार यही कहते रहे: “क्रोध को त्याग दे।” (सहीह अल-बुखारी, हदीस संख्या 6116)

Share icon

Subscribe

CPS shares spiritual wisdom to connect people to their Creator to learn the art of life management and rationally find answers to questions pertaining to life and its purpose. Subscribe to our newsletters.

Stay informed - subscribe to our newsletter.
The subscriber's email address.

leafDaily Dose of Wisdom