क़ुरआन की सूरह अन-निसा में बताया गया है कि मेल-मिलाप अधिक श्रेष्ठ है (सूरह अन-निसा, 4:128)। मेल-मिलाप क्या है? मेल-मिलाप दरअसल शांति के परिणाम का दूसरा नाम है। जहाँ मेल-मिलाप है, वहाँ शांति है और जहाँ मेल-मिलाप नहीं है, वहाँ शांति भी नहीं है। इस दृष्टि से यह कहना सही होगा कि इस्लाम में शांति को सबसे बेहतर और सबसे बड़ी भलाई का दर्जा प्राप्त है।
आम तौर पर लोग न्याय को बड़ी चीज़ समझते हैं, लेकिन वास्तव में सत्य यह है कि न्याय केवल एक विचार या एक अवधारणा है। वास्तविक प्रश्न यह है कि यह विचार या अवधारणा वास्तविक रूप में किस प्रकार प्राप्त हो। इसका उत्तर केवल एक है और वह है शांति के माध्यम से। शांति का यह लाभ है कि इसके माध्यम से अवसर प्राप्त होते हैं। न्याय किसी को अपने आप नहीं मिलता। न्याय किसी समूह को केवल उस समय मिलता है, जबकि वह अवसर को पहचाने और उसका प्रयोग समझदारी से करे।
आज संसार भर में बहुत से स्थानों पर जहाँ लोग न्याय के लिए लड़ रहे हैं, उनमें से हर एक उचित न्याय पाने में असफल है। इसका कारण केवल एक है और वह है अनुचित कार्यशैली। यह एक सच्चाई है कि इस संसार में सबसे अधिक महत्ता कार्यशैली की है। इस संसार में कोई भी सही लक्ष्य अनुचित कार्यशैली के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह सिद्धांत इतना अधिक आम है कि इसमें किसी भी व्यक्ति या किसी भी समूह का कोई अपवाद नहीं।
कोई समूह (जाति) जो न्याय चाहता है, उसको सबसे पहले अपने यहाँ शांति स्थापित करनी चाहिए। शांति की महत्ता इतनी अधिक है कि उसे हर स्थिति में स्थापित करना आवश्यक है, चाहे इसका कोई भी मूल्य चुकाना पड़े। शांति कभी भी द्विपक्षीय आधार पर स्थापित नहीं होती, बल्कि यह हमेशा एकपक्षीय धैर्य और सहनशीलता की बुनियाद पर स्थापित होती है। इसके सिवा शांति को स्थापित करने का कोई और उपाय नहीं है।
प्रकृति की व्यवस्था अवसरों पर आधारित है। प्रकृति की व्यवस्था के अंतर्गत हमेशा ऐसा होता है कि अवसर बड़ी संख्या में और भरपूर मात्रा में उपस्थित रहते हैं। घृणा और हिंसा का वातावरण इन प्राकृतिक अवसरों के लिए बाधक दीवार की हैसियत रखता है। प्रकृति की ओर से दिए गए बहुत से अवसरों का लाभ उठाने के लिए सबसे पहले घृणा और हिंसा की बाधक दीवारों को हटाए जाने की आवश्यकता है। इन बाधक दीवारों के हटते ही अवसर एक बाढ़ की तरह उमड़ पड़ते हैं, जिसमें कोई भी अपने उद्देश्य को प्राप्त करने का लाभ उठा सकता है। ये अवसर अपनी प्रकृति की दृष्टि से धर्मनिरपेक्ष भी होते हैं और धार्मिक भी।
अवसर का सांसारिक प्रयोग यह है कि लोग शिक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में उपलब्ध संसाधनों के प्रबंधन और उनके उपयोग जैसे रचनात्मक कार्यों में व्यस्त हो जाएँ और प्राप्त अवसरों का उपयोग करके वे हर प्रकार की उन्नति करें। अवसरों का धार्मिक उपयोग यह है कि ईमान वाले इन अवसरों को एकेश्वरवाद के प्रचार में प्रयोग करें। वे इस दावती मिशन में सक्रिय होकर अपने आपको ईश्वर के विशेष उपहारों के योग्य बनाएँ।