भूमिका

ईश्वर-प्राप्ति का साधन ही जिहाद है, न कि युद्ध या हिंसा, जिहाद क्या है, इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना चाहिए कि वर्तमान समय में मुसलमान जिहाद के नाम पर जो कुछ कर रहे हैं, वह जिहाद नहीं है। ये सभी जातीय भावनाओं के अंतर्गत छेड़ी हुई लड़ाइयाँ हैं, जिसे अनुचित रूप से जिहाद का नाम दे दिया गया है। अरबी भाषा में जिहाद का मूल शब्दजुहुदहै अर्थात भरपूर प्रयास करना। ‍‌जिहाद वास्तव में शांतिपूर्ण प्रयास का नाम है, यह किसी प्रकार के लड़ाई-झगड़े या जंग का समानार्थक नहीं।

जिहाद एक लगातार जारी रहने वाली प्रक्रिया है, जो ईश्वरभक्त के जीवन में दिन-रात जारी रहती है और वह कभी समाप्त नहीं होती। निरंतर जिहाद यह है कि इंसान अपने जीवन के हर मामले में लगातार ईश्वर की इच्छा का पालन करता रहे और इस जिहाद में जो भी चीज़ रुकावट बने, उसे अपने जीवन पर हावी न होने दे, जैसेमन की इच्छाएँ, स्वार्थ और अपने लाभ की इच्छा, रस्मो-रिवाज का ज़ोर और उसका दबाव, साख, प्रतिष्ठा, पहचान और प्रसिद्धि की आवश्यकता, अपनी महानता और श्रेष्ठता की बात, धन-दौलत की इच्छा आदि। ये सभी चीज़ें ईश्वर-उन्मुख जीवन (God-oriented life) और पवित्र कार्यों के लिए रुकावट पैदा करती हैं। इस तरह की सभी रुकावटों पर नियंत्रण पाते हुए ईश्वर के आदेश का पालन करना ही वास्तविक जिहाद है और यही जिहाद का मूल अर्थ भी है।


मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान

Maulana Wahiduddin Khan
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