इस्लामी जिहाद लगातार की जाने वाली एक रचनात्मक प्रक्रिया है। वह मोमिन के पूरे जीवन में लगातार जारी रहती है। इस प्रक्रिया के तीन बड़े पहलू हैं—
(1) जिहाद-ए-नफ़्स : अपनी नकारात्मक भावनाओं और अपने अंदर की अनुचित इच्छाओं पर नियंत्रण करना और हर स्थिति में ईश्वर के मनोवांछित मार्ग पर चलते रहना।
(2) जिहाद-ए-दावत : ईश्वर के संदेश को सभी लोगों तक पहुँचाना और इसके लिए एकतरफ़ा हमदर्दी और भलाई की इच्छा के साथ भरपूर प्रयास करना। यह एक महान कार्य है, इसलिए इसे क़ुरआन में जिहाद-ए-कबीर यानी 'महान जिहाद' कहा गया है।
(क़ुरआन, सूरह अल-फ़ुरक़ान, 25:52)
(3) शत्रु के विरुद्ध जिहाद : सत्य धर्म के विरोधियों का सामना करना और धर्म को हर स्थिति में सुरक्षित और स्थापित रखना ही इस जिहाद का वास्तविक अर्थ है। यह जिहाद पहले भी वास्तव में एक शांतिपूर्ण प्रक्रिया थी और अब भी यह मूल रूप से एक शांतिपूर्ण प्रक्रिया है। इस दृष्टि से जिहाद एक शांतिपूर्ण संघर्ष है, न कि वास्तव में कोई सशस्त्र कार्रवाई।
एक रिवायत के अनुसार, हज़रत मुहम्मद ने माँ-बाप की सेवा के बारे में कहा कि तुम अपने माँ-बाप के लिए जिहाद करो। इससे पता चलता कि माँ-बाप की सेवा करना जिहाद का एक कर्म है।
इस प्रकार क़ुरआन की कई आयतें और हदीसें हैं, जिनसे पता चलता है कि जिहाद की प्रक्रिया मूल रूप में एक शांतिपूर्ण प्रक्रिया है। यह किसी आवश्यक ईश्वरीय कार्य में शांति की सीमाओं के अंदर किया जाने वाला भरपूर प्रयास या संघर्ष है। इस प्रकार जिहाद शब्द का सही अर्थ 'शांतिपूर्ण संघर्ष' है।