इंसान अपनी आरजु़ओं की तकमील के लिए दुनिया मे जद्दोजहद शुरू करता है। मगर उसे महसूस होता है कि अपनी मतलूब चीज़ों को पाने के बाद भी वह ब-दस्तूर महरूमी के एहसास से दो-चार है, अब भी वह पाने के एहसास तक न पहुँच सका; क्योंकि उसके दिल में जो आरज़ू थी, वह परफ़ेक्ट चीज़ के लिए थी, जबकि दुनिया की हर चीज़ ग़ैर-परफ़ेक्ट (imperfect) है और ज़ाहिर है किसी परफ़ेक्शनिस्ट को ग़ैर-परफ़ेक्ट में तस्कीन नहीं मिल सकती। दुनिया में राहत और मुसर्रत तलाश करना ऐसा ही है, जैसे कोई मुसाफ़िर रेलवे स्टेशन पर अपने लिए एक आरामदेह घर बनाने की कोशिश करे। हर मुसाफ़िर जानता है कि स्टेशन घर बनाने के लिए नहीं होता।

इस मसले का हल सिर्फ़ एक है और वह यह कि आदमी जन्नत को अपना निशाना बनाए। जन्नत पूरे मायनों में एक ‘परफ़ेक्ट वर्ल्ड’ है, जबकि उसके मुक़ाबले में मौजूदा दुनिया सिर्फ़ एक ‘इम्परफ़ेक्ट वर्ल्ड’ की हैसियत रखती है। इंसान अपनी पैदाइश के ऐतबार से जिस परफ़ेक्ट वर्ल्ड का तालिब है, वह जन्नत है।

मौजूदा दुनिया अमल-ए-जन्नत के लिए है, न कि तामीर-ए-जन्नत के लिए। जन्नत को अपनी मंज़िल-ए-मक़सूद बनाना सिर्फ़ अक़ीदे की बात नहीं, वह मक़सद-ए-हयात की बात है। ऐसा मक़सद जिसके सिवा कोई और मक़सद इंसान के लिए मुमकिन नहीं।

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