By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda | July 12, 2024

मैं आबादी से दूर एक पहाड़ के सामने खड़ा था। हरे-भरे पेड़ मेरे सामने फैले हुए थे। चिड़ियों की चहचाहने की आवाज़ कानों में आ रही थी। विभिन्न प्रकार के जानवर चलते-फिरते नज़र आ रहे थे। यह देखकर मेरे ऊपर विचित्र-सा प्रभाव हुआ। कैसा महान और कैसा पूर्ण होगा वह ईश्वर, जिसने इतना बड़ा संसार बनाया और फिर उसको विवश कर दिया कि वह उसकी बनाई हुई योजना का बाध्य रहते हुए गतिविधि करे!

कितना सुंदर और कितना अबोध है यह संसार! यहाँ चिड़ियाँ वही आवाज़ें निकालती हैं, जो उनके रचयिता ने उन्हें सिखाया है। यहाँ बिल्‍ली और बकरी उसी प्रकार अपना-अपना खाना खाते हैं, जो जन्म से उनके लिए निर्धारित कर दिया गया है। यहाँ पेड़ ठीक उसी योजना के अनुसार उगते और बढ़ते हैं, जो अनादिकाल से उनके स्‍वामी ने उनके लिए निर्धारित कर दी है। यहाँ नदी ठीक उसी नियम के अंतर्गत बहती है, जो उसके लिए सदैव से निश्चित है। ईश्वर की सृष्टि अत्यंत पूर्ण समूह है और यहाँ की हर चीज़ निम्‍न अवहेलना के बिना उसी प्रकार क्रिया करती है, जिसका आदेश उसके ईश्वर ने उसको दे रखा है।

फिर भी इंसान का मामला इससे बहुत अलग है। वह अपने मुँह से ऐसी आवाज़ें निकालता है, जिसकी अनुमति उसके ईश्वर ने उसे नहीं दी। वह ऐसी चीज़ों को अपना भोजन बनाता है, जिससे उसके मालिक ने उसे रोक रखा है। वह अपनी जीवन-यात्रा के लिए ऐसे रास्‍ते तय करता है, जहाँ अनादिकाल से लिखने वाले ने पहले से ही उसके लिए लिख दिया है कि ‘यहाँ से गुज़रना मना है’। इंसान ईश्वर के संसार का बहुत छोटा-सा हिस्‍सा है, लेकिन वह विशाल ब्रह्मांड की सामूहिक व्‍यवस्‍था से विद्रोह करता है, वह ईश्वर के सुधार किए हुए संसार में उपद्रव करता है।

यह ईश्वर के विपरीतताहीन संसार में विपरीतता को हस्तक्षेप करना है। यह ‘एक ही जैसे समूह में’ कोई और जोड़ लगाना है। यह एक सुंदर चित्र पर भद्देपन का धब्‍बा डालना है। यह एक पूर्ण संसार में अपूर्ण चीज़ की वृद्धि करना है। यह फ़रिश्तों की तन्‍मयता के वातावरण में शैतान को तत्‍पर होने का अवसर देना है।

ईश्वर की प्रकृति और उसकी श्रेष्‍ठतम अभिरुचि का प्रमाण, जो महानतम सृष्टि में हर पल नज़र आता है, वह इस विचार का खंडन करता है कि यह स्थिति इसी प्रकार बनी रहेगी। ईश्वर की प्रकृति निश्चित रूप से इस अत्याचार की अनुमति नहीं दे सकती। ईश्वर की श्रेष्‍ठतम अभिरुचि बिल्कुल भी इसे सहन नहीं कर सकती। आवश्‍यक है कि वह दिन आए, जब सृष्टि की यह विपरीतता समाप्‍त हो, ईश्वर की इच्छा इंसानी संसार में भी इसी प्रकार पूरी होने लगे, जिस प्रकार वह शेष संसार में पूरी हो रही है।

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