By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda | September 27, 2024

एक साहब से बात हो रही थी। 20 वर्ष पहले वह एक मामूली मिस्‍त्री थे। अब वह लगभग दो दर्जन मशीनों के मालिक हैं। उनके कई कारख़ाने चल रहे हैं। मैंने एक मुलाक़ात में कहा, “माशा अल्‍लाह! आपने अपने कारोबार में काफ़ी तरक़्क़ी की है।” उन्‍होंने बड़े विश्वासपूर्ण और प्रसन्न स्वर में उत्तर दिया, “इतनी कमाई कर ली है कि बच्‍चे अगर कुछ न करें, तब भी वे सौ वर्ष तक आराम से खाते रहेंगे।”

यह एक बड़ा महत्वपूर्ण उदाहरण है। अगर देखा जाए तो आज के दौर में हर इंसान का यही हाल हो रहा है। हर इंसान अपने-अपने क्षेत्र में यही विश्वास लिये हुए है कि उसने अपने मामलों को ठीक कर लिया है। उसे अब किसी ख़तरे से डरने की आवश्यकता नहीं, कम-से-कम ‘सौ वर्ष’ तक तो बिल्‍कुल नहीं।

कोई अपने बड़ों को प्रसन्न करके संतुष्‍ट है तो किसी को यह गर्व है कि उसने अपने क़ानूनी काग़ज़ों को पक्‍का कर लिया है। किसी को अपने भरोसे लायक़ माध्‍यमों और बैंक बैलेंस पर गर्व है तो कोई आदमी अपने बाहुबल और दादागी‍री पर भरोसा किए हुए है। किसी के पास कुछ नहीं है तो जिसके पास है, वह उससे चापलूसी और समझौते का संबंध करके समझता है कि उसने भी एक छतरी प्राप्त कर ली है, अब उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं; लेकिन भूचाल जब आता है तो इस प्रकार के सारे भरोसों को झूठा सिद्ध कर देता है। भूचाल के लिए पक्‍के महल और कच्‍ची झोंपड़ियों में कोई अंतर नहीं। बलवान और निर्बल, दोनों इसके लिए तो बराबर हैं। वह निःसहाय (Destitute) लोगों को भी इसी प्रकार तहस-नहस कर देता है, जिस प्रकार उन लोगों को जो मज़बूत सहारा पकड़े हुए हैं। भूचाल यह याद दिलाता है कि इस संसार में इंसान कितना लाचार है।

यह भूचाल ईश्वर की एक एडवांस निशानी है, जो बताती है कि हर एक के लिए अंततः क्‍या होने वाला है। भूचाल एक प्रकार की छोटी प्रलय है, जो बड़ी प्रलय का पता देती है। जब डरावनी गड़गड़ाहट लोगों के होश उड़ा देती है, जब मकान-के-मकान ताश के पत्‍तों की तरह गिरने लगते हैं, जब धरती का निचला हिस्‍सा ऊपर आ जाता है और ऊपर का नीचे दफ़न हो जाता है तो उस समय इंसान जान लेता है कि वह प्रकृति की शक्ति के आगे बिल्‍कुल लाचार है। उसके लिए केवल यह भाग्य है कि लाचारी के साथ अपनी बरबादी का तमाशा देखे और इसकी तुलना में कुछ न कर सके।

क़यामत का भूचाल वर्तमान भूचाल से अरबों-खरबों गुणा अधिक कठोर होगा। उस समय सारे सहारे टूट जाएँगे। हर इंसान अपनी होशियारी भूल जाएगा। महानता के सारे स्तंभ इस प्रकार गिर चुके होंगे कि उनका कहीं कोई अस्तित्‍व न होगा। उस दिन वही सहारे वाला होगा, जिसने वर्तमान चीज़ों को बेसहारा समझा था। उस दिन वही सफल होगा, जिसने उस समय ईश्वर को अपनाया था, जब सारे लोग ईश्वर को भूलकर दूसरी छतरियों की शरण लिये हुए थे।

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