Soulveda | November 30, 2023
क़ुरआन में कहा गया है— “ईश्वर आसमान व ज़मीन का नूर है।” (सूरह अन-नूर) इसका अर्थ यह है कि संपूर्ण संसार ईश्वरीय गुणों का प्रकटन है। संवेदनशील हृदय को यहाँ की हर चीज़ में ईश्वर की झलकियाँ नज़र आती हैं। ब्रह्मांड अपने पूरे अस्तित्व के साथ आध्यात्मिक आहार का दस्तरख़्वान है।
ईश्वर में दृढ़ विश्वास अगर किसी इंसान को वह संवेदनाएँ दे दे, जो ईश्वर पर सच्चे विश्वास से पैदा होती हैं तो सृष्टि की घटनाओं में उसे चारों ओर ईश्वर का प्रकाश दिखाई देगा। हवा के कोमल झोंके जब उसके शरीर को छुएँगे तो उसे यह अहसास होगा कि जैसे ईश्वर उसको छू रहा है। नदियों के बहाव में उसे सत्य की करुणा का जोश उबलता हुआ नज़र आएगा। चिड़ियों की चहचाहट जब उसके कानों में रस घोलेगी तो उसके हृदय के तारों पर ईश्वरीय तराने के गीत जाग उठेंगे। फूलों की महक जब उसके मस्तिष्क और प्राणों को सुगंधित करेगी तो वह उसके लिए ईश्वरीय सुगंध में स्नान करने के अर्थ जैसा बन जाएगा।
सारी सृष्टि ईशभक्त के लिए आत्मिक भोजन का दस्तरख़्वान है। ठीक वैसे ही, जैसे स्वर्ग उसके लिए भौतिक जीवन का दस्तरख़्वान होगा। वर्तमान संसार की सभी चीज़ों को इस प्रकार बनाया गया है कि इंसान उनको देखकर सीख प्राप्त करे। उनके द्वारा वह ईश्वरीय अवस्थाओं को पा ले, जो उनके अंदर उन लोगों के लिए रख दी गई हैं कि जो ईश्वर से डरने वाले हों।
ढाक एक साधारण वृक्ष है, लेकिन इसके ऊपर बहुत सुंदर फूल उगते हैं। शरदकाल के पतझड़ के बाद यह वृक्ष देखने में एक सूखी लकड़ी की तरह इससे भी अधिक सूखी धरती पर खड़ा होता है। इसके बाद एक मौन क्रांति आती है। आश्चर्यजनक रूप से अत्यंत सुंदर फूल उसकी शाख़ों पर खिल उठते हैं। सूखी लकड़ी का आकार कोमल और रंगीन फूलों से ढक जाता है। ऐसा लगता है, जैसे निराश और मूल्यहीन अस्तित्व के लिए ईश्वर ने विशेष रूप से अपनी सुंदर छतरी भेज दी है।
ऐसा इसलिए होता है कि कोई ईश्वर का भक्त उसे देखकर कहे— ऐ ईश्वर! मैं भी एक ढाक हूँ। तू चाहे तो मेरे ऊपर सुंदर फूल खिला दे। मैं एक ठूँठ हूँ, तू चाहे तो मुझको हरा-भरा व तरो-ताज़ा कर दे। मैं एक अर्थहीन अस्तित्व हूँ, तू चाहे तो मेरे जीवन को अर्थपूर्णता प्रदान कर दे। मैं नरक के किनारे खड़ा हूँ, तू चाहे तो मुझे स्वर्ग में प्रविष्ट कर दे।