By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda | September 25, 2023

जब आप अपने कमरे में हों तो आप इसकी छत को मापकर पता कर सकते हैं कि इसकी लंबाई और चौड़ाई कितनी है, लेकिन जब आप खुले मैदान में आसमान के नीचे होते हैं तो आपको यह पता होता है कि आसमान की छत की लंबाई और चौड़ाई को मापने के लिए आपके सारे पैमाने अपर्याप्‍त (Insufficient) हैं। यही स्थिति ईश्वर के पूरे संसार की है। एक बीज जिस प्रकार बढ़कर वृक्ष का एक संसार बनाता है, इसका वर्णन कौन कर सकता है? सूर्य का प्रकाश, हवाओं की व्‍यवस्‍था, चिड़ियों के गीत, पानी के बहते हुए स्रोत और इसी प्रकार की असंख्‍य चीज़ें, जिनको हम अपनी आँखों से देखते हैं, उनका शब्‍दों में वर्णन करना संभव नहीं। सत्‍य इसमें अधिक सौम्‍य है कि इसका इंसानी शब्‍दों में वर्णन किया जा सके। वास्तविकता यह है कि जहाँ ज़ुबान मौन हो जाती है, वहाँ से वास्‍तविकताएँ आरंभ होती हैं। जहाँ शब्‍द साथ नहीं देते, वहाँ से अर्थ का प्रारंभ होता है।

ईश्वर मौन भाषा में बोल रहा है और हम इसको शोर की भाषा में सुनना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में भला कैसे संभव है कि हम ईश्वर की आवाज़ को सुन सकें? इस संसार की सबसे मूल्‍यवान बातें वह हैं, जो मौन भाषा में प्रसारित हो रही हैं; लेकिन जो लोग शोरगुल की भाषा सुनना जानते हों, वे इन मूल्‍यवान बातों से उसी प्रकार अनजान रहते हैं, जिस प्रकार एक बहरा आदमी संगीत से।

ईश्वर का संसार तो बहुत सुंदर है, इसकी सुंदरता का वर्णन शब्‍दों में नहीं किया जा सकता। आदमी जब इस संसार को देखता है तो एकदम से उसका जी चाहता है कि वह ईश्वर के इस अनंत संसार का वासी बन जाए। वह हवाओं में शामिल हो जाए, वह पेड़-पौधों की हरियाली में जा बसे, वह आसमान की ऊँचाइयों में खो जाए, लेकिन इंसान की सीमाएँ उसकी इस अभिलाषा के पथ में बाधा हैं। वह अपने प्रिय संसार को देखता है, लेकिन उसमें शामिल नहीं हो पाता। शायद स्वर्ग इसी का नाम है कि इंसान को उसकी सीमाओं से स्वतंत्र कर दिया जाए, ताकि वह ईश्वर के सुंदर संसार में सदैव के लिए प्रविष्ट हो जाए।

इंसान ने जो संसार बनाया है, वह ईश्वर के संसार से बिल्‍कुल अलग है। इंसान की बनाई हुई सवारियाँ शोर और धुआँ पैदा करती हैं, लेकिन ईश्वर के संसार में प्रकाश एक लाख छियासी हज़ार मील प्रति सेकंड की रफ़्तार से चलता है और न कहीं शोर होता है, न ही धुआँ। इंसान इंसानों के बीच इस प्रकार रहता है कि एक को दूसरे से विभिन्न प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है, लेकिन ईश्वर के संसार में हवा इस प्रकार गुज़रती है कि वह किसी से नहीं टकराती। इंसान अपनी गंदगी को कार्बन, पसीने और मल-मूत्र के रूप में बाहर निकालता है, लेकिन ईश्वर ने अपने संसार में जो वृक्ष उगाए हैं, वह इसके विपरीत अपनी मलिनता को ऑक्सीजन के रूप में बाहर निकालते हैं और फूल अपनी मलिनता को सुगंध के रूप में।

इंसान के बनाए हुए समस्‍त नगरों में कूड़े को ठिकाने लगाना एक बहुत बड़ी समस्‍या बना हुआ है, जबकि ईश्वर के बनाए हुए संसार में हर रोज़ बड़े पैमाने पर कूड़ा निकलता है, लेकिन किसी को पता नहीं चलता, क्योंकि उसका पुनर्चक्रण (Recycling) करके उसे दोबारा सृष्टि के लाभदायक अंशों में परिवर्तित कर दिया जाता है। जो इंसान वास्तविकता की झलक देख ले, वह इसके वर्णन से स्‍वयं को असहाय अनुभव करने लगता है। वह मौन हो जाता है, न यह कि वह शब्दों का भंडार खड़ा कर दे।

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