By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda | January 23, 2023

इसमें वही बुनियादी अंश होते हैं, जो कोयले में पाए जाते हैं। प्राकृतिक हीरा तैयार होने में कई सौ वर्ष लगते हैं। हीरा जब निकाला जाता है, तो वह खुरदुरे खनिज के समान होता है। तराश (काट-छाट) के बाद वह मूल्यवान हीरे के रूप में बनकर तैयार हो जाता है। नगीना बनाने में सामान्य रूप से 35-60% भाग साफ करने में काट दिया जाता है।

जो हीरे का मामला है, वही प्रकृति के अनुसार, इंसान का मामला भी है। हीरे की तरह इंसान भी एक संभावी (potential) के रूप में पैदा होता है। इस संभावी को वास्तविक (actual) बनाना इंसान का अपना काम है। जो व्यक्ति इस राज़ को जाने और अपनी संभावना को घटना बनाने का प्रयास करे, “वही हीरा इंसान” है और जो आदमी ऐसा न कर सके, उसका मामला ऐसा ही है जैसे किसी हीरे के टुकड़े को कूड़ेदान में डाल दिया जाए।

हर इंसान के अंदर एक संभावी (potential) व्यक्तित्व होता है, यह व्यक्तित्व किसी इंसान को प्रकृति की ओर से प्रदान किया जाता है। इस व्यक्तित्व का विकास अपने आप नहीं हो सकता, यह कार्य आदमी को स्वयं करना है, यही आदमी की असल परीक्षा है। कुछ इंसानों के बारे में कहा जाता है कि वह सैल्फ मेड मैन (self made man) थे, मगर हकीकत यह है कि हर पैदा होने वाले इंसान का केस यही है।

इंसान को यह करना है कि वह उस व्यक्तित्व (personality) की खोज करे, जो प्रकृति की ओर से उसको मिला है। यह व्यक्तित्व मानो बिना तराशा (खुरदुरा-टेढ़ा-मेढ़ा) हीरा है। हर इंसान को यह करना है कि वह अपने इस बिना तराशे इंसान को मालूम करे और फिर बुद्धिमत्ता पूर्ण योजना के द्वारा वह इस बिना तराशे (कच्चे) हीरे को तराशा (पक्का) हुआ हीरा बनाए। जो व्यक्ति इस अमल में असफल रहे, उसके लिए न दुनिया में कोई स्थान है और न ही आखिरत (परलोक) में कोई स्थान।

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