By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda | August 22, 2025

एक प्रेस ने एक बार एक बड़ी संस्था की किताब छापी। किताबों की संख्या पाँच हज़ार थी। जब किताब छपकर और पूरी होकर संस्था में पहुँची, तो संस्था के प्रबंधक का टेलीफोन आया। वह कह रहा था, “आप तुरंत यहाँ आएँ और मुझसे मिलें।” प्रेस का मालिक जब वहाँ पहुँचा, तो संस्था का मैनेजर उस पर बरस पड़ा। उसने छपी हुई किताब की कुछ प्रतियाँ दिखाते हुए कहा, “देखिए, कितनी ग़लत कटिंग हुई है?” प्रेस के मालिक ने देखा कि कटिंग तिरछी थी, जिसके कारण एक तरफ़ का कोना ज़्यादा निकला हुआ था। मालिक ने किताब को देखा और चुप रहा। उधर संस्था का मैनेजर लगातार बिगड़ता चला जा रहा था। आख़िरकार जब वह अपने सारे शब्द ख़त्म कर चुका, तो प्रेस के मालिक ने गंभीरता से कहा, “आप इतने परेशान क्यों हैं? नुक़सान तो हमारा हुआ है, परेशान तो हमें होना चाहिए।”

“क्या मतलब, तुम्हारा नुक़सान कैसे हुआ?”

“ज़ाहिर है कि मैं आपको इस हालत में किताब नहीं दे सकता। मैं इसे वापस ले लूँगा और आपको दूसरी किताब छापकर दूँगा। यह मेरी ज़िम्मेदारी है। चाहे मेरा कितना भी नुक़सान हो, मगर मुझे आपको सही काम देना है।”

ये शब्द प्रेस के मालिक की ज़ुबान से निकले ही थे कि अचानक संस्थान के मैनेजर का लहजा बदल गया। वही व्यक्ति जो पहले क्रोध में बातें कर रहा था, अब उसका रवैया सहानुभूतिपूर्ण हो गया, क्योंकि प्रेस वाले ने अपनी ग़लती मान ली थी। संस्था के प्रबंधक को आम रिवाज की तरह इसकी उम्मीद नहीं थी, लेकिन जब उसने देखा कि वह न केवल अपनी ग़लती स्वीकार कर रहा है, बल्कि पूरी भरपाई करने के लिए भी तैयार है, तो उसका प्रभावित होना स्वाभाविक था।

“नहीं, आप इतना नुक़सान क्यों सहें?” उसने अपना अंदाज़ बदलते हुए कहा। जब प्रेस के मालिक ने देखा कि मैनेजर का हृदय नर्म हो गया है, तो उसने मैनेजर से कहा, “एक उपाय तो समझ में आता है। मुझे आप कुछ किताबें दें। मैं कोशिश करता हूँ। अगर सफल हो गया, तो दोबारा छपवाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। मैनेजर ने उत्साह से कहा, “बड़े शौक़ से, आप अवश्य प्रयास करें।” फिर प्रेस का मालिक किताब की दस प्रतियाँ लेकर वापस आ गया। उसने एक अच्छी मशीन से किताब के चारों कोनों को सावधानीपूर्वक काट दिया। फिर प्रेस का मालिक उन्हें संस्था के प्रबंधक के पास दोबारा ले गया। मैनेजर उसे देखकर ख़ुश हो गया। उसने कहा, “बिलकुल ठीक है, आप सभी किताबों को इसी तरह सही कर दें।”

प्रेस के मालिक ने कहा, “ग्राहक की नज़र में जो ग़लती एक इंच की होती है, उसे मैं एक फुट के बराबर मानने को तैयार रहता हूँ।” वास्तव में यह किसी व्यवसाय में सफलता के लिए बेहद आवश्यक है। ग्राहक को संतुष्ट करके आप ग्राहक को हर चीज़ पर राज़ी कर सकते हैं। “बल्कि मेरा तो यही हाल है,” प्रेस के मालिक ने आगे कहा, “अगर मेरे काम में कोई ग़लती हो जाए है और वह मेरे ध्यान में आ जाती है, तो मैं ख़ुद ही ग्राहक को बता देता हूँ कि मुझसे फ़लाँ ग़लती हो गई है। अब मुझे भरपाई के बारे में बताओ, मैं उसके लिए तैयार हूँ।” नतीजा यह होता है कि ग्राहक को सहानुभूति हो जाती है और मामला बिना किसी कड़वाहट के ख़त्म हो जाता है।

SourceRaahein Band Nahi

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