क़ुरआन में मुख़्तलिफ़ मक़ाम पर बताया गया है कि इसराईली जब मिस्र में आबाद थे तो मिस्र का बादशाह उनके लड़कों को क़त्ल कर देता था और उनकी औरतों को ज़िंदा रखता था।
(देखिए— 2:49, 7:141, 14:6)
इन आयात में अल्फ़ाज़ बिलकुल आम हैं। ब-ज़ाहिर इनका मतलब यह निकलता है कि फ़िरऔन बनी-इसराईल के तमाम लड़कों को क़त्ल करवा दिया करता था; मगर ऐसा नहीं, क्योंकि अगर वह तमाम लड़कों को क़त्ल करता तो बनी-इसराईल की नस्ल ही मिट जाती। असल यह है कि फ़िरऔन बनी-इसराईल के ऊँचे और बा-असर ख़ानदान के लड़कों को क़त्ल करवाता था या ऐसे जवानों को क़त्ल करवा देता था, जिनके अंदर उसे क़ियादत की सलाहियत नज़र आती थी।
असल यह है कि फ़िरऔन बनी-इसराईल के ऊँचे और बा-असर ख़ानदान के लड़कों को क़त्ल करवाता था या ऐसे जवानों को क़त्ल करवा देता था, जिनके अंदर उसे क़ियादत की सलाहियत नज़र आती थी।
बनी-इसराईल चूँकि हज़रत यूसुफ़ के ज़माने में हुक्मराँ गिरोह की हैसियत रखते थे, इसलिए वह उनसे सियासी ख़तरा महसूस करता था। वह चाहता था कि बनी-इस्राईल के अंदर ऐसे आला अफ़राद न उभरें, जो दोबारा अपनी क़ौम को मुनज़्ज़म कर सकें।
अल्लाह तआला ने उमूमी अंदाज़ में इस फ़ेल की ग़ैर-मामूली शिद्दत ज़ाहिर करने के लिए मना फ़रमाया। यही दावत का उस्लूब है। जो लोग इस राज़ को न समझें, वे बहुत से गहरे मायनों को पाने से महरूम रह जाएँगे।
असल यह है कि फ़िरऔन बनी-इसराईल के ऊँचे और बा-असर ख़ानदान के लड़कों को क़त्ल करवाता था या ऐसे जवानों को क़त्ल करवा देता था, जिनके अंदर उसे क़ियादत की सलाहियत नज़र आती थी।