By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda | October 28, 2023

समस्‍त यात्राओं में रेल की यात्रा सबसे अधिक अनुभवों से भरी होती है। इंसानी क़ाफ़िलों को लिये हुए तेज़ रफ़्तार एक्‍सप्रेस दौड़ी चली जा रही है। गाड़ी के दोनों ओर प्रकृति के दृश्‍य निरंतर हमारा साथ दे रहे हैं। इस प्रकार ट्रेन जैसे जीवन की बड़ी यात्रा का एक प्रतीक बन गई है, जो निशानियों से भरे हुए इस संसार में इंसान तय कर रहा है, लेकिन जिस प्रकार ट्रेन के यात्री चारों दिशाओं के दृश्‍यों से अनभिज्ञ होकर अपनी निजी दिलचस्पियों में खोए रहते हैं, उसी प्रकार इंसान वर्तमान संसार में अपने जीवन के दिन पूरे कर रहा है। बहुत कम ऐसा होता है कि वह ईश्वर की बिखरी हुई निशानियों पर सोच-विचार करे।

सूरज अपनी रोशनी का उजाला लिये निकलता है और इंसान के ऊपर इस प्रकार चमकता है मानो वह कोई संदेश सुनाना चाहता हो, लेकिन वह कुछ कहने से पहले ही अस्‍त हो जाता है। वृक्ष अपनी हरी-भरी शाख़ें निकालते हैं, नदी अपनी लहरों के साथ बहती है। ये सब कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन इंसान इनके पास से गुज़र जाता है, इन्‍हें अनसुना किए हुए। आकाश की ऊँचाइयाँ और धरती की कोमलताएँ सब एक बड़े ‘समूह’ में सम्मिलित मालूम होते हैं, लेकिन इनमें से हर एक मौन है। वह इंसान से बात नहीं करता। यह महान सृष्टि क्‍या गूँगे शाहकारों का अजायबघर है? नहीं, वास्तविकता यह है कि इनमें से सबके पास ईश्वर का संदेश है और इस संदेश को हर कोई सार्वकालिक भाषा में प्रसारित कर रहा है, लेकिन इंसान दूसरी आवाज़ में इतना खोया हुआ है कि उसे ब्रह्मांड का मौन वार्तालाप सुनाई नहीं देता।

एक यात्रा के दौरान हम एक स्‍टेशन पर नमाज़ पढ़ने के लिए उतरे। हमने स्‍टेशन के आदमियों से पूछा कि पश्चिम किस ओर है, लेकिन किसी के पास इस साधारण से प्रश्न का उत्तर न था। मैंने सोचा कि सूरज एक प्रकाशमय वास्तविकता की हैसियत से प्रतिदिन इनके ऊपर निकलता है और अस्‍त होता है, लेकिन लोग स्‍वयं में इतने व्यस्त हैं कि इनको पश्चिम व पूरब का ज्ञान ही नहीं। फिर वह सौम्‍य संदेश, जो सूरज और इसके ब्रह्मांडीय सहयोगी मौन भाषा में प्रसारित कर रहे हैं, इनसे कोई कैसे सचेत हो सकता है!

हमारी ट्रेन एक स्‍टेशन पर रुकी। मैं बाहर आकर प्‍लेटफार्म पर खड़ा हो गया। सूरज अभी-अभी अस्‍त हुआ था। हरे-भरे वृक्ष, इनके पीछे बिखरती लालिमा और इनके ऊपर फैले हुए बादल विचित्र क्षितिजीय सुंदरता का दृश्‍य प्रस्तुत रहे थे। इनमें यह सुंदरता इनकी ऊँचाई ने पैदा की है। मैंने सोचा— ‘लेकिन इंसान इन ऊँचाइयों तक जाने के लिए तैयार नहीं होता। वह उस स्‍तर पर नहीं जीता, जिस स्‍तर पर वृक्ष जी रहे हैं। वह वहाँ बसेरा नहीं लेता, जहाँ रोशनी और बादल बसेरा लिये हुए हैं। इसके विपरीत वह निम्‍नस्‍तरीय स्‍वार्थों में ही जीता है। वह झूठी शत्रुता में साँस लेता है, सृष्टि का सहचर बनने के बजाय अपने आपको वह अपने अस्तित्‍व के आवरण में बंद कर लेता है। एक ऐसा संसार, जहाँ स्वर्ग की बहारें उसकी प्रतीक्षा कर रही हैं। वहाँ वह अपने आपको नरक के वातावरण में डाल देता है। इस संसार के बिगाड़ का सारा कारण यही है। अगर वह उच्‍चस्‍तर पर जीने लगे तो उसके जीवन में भी वही सुंदरता आ जाए, जो प्रकृति के सुंदर दृश्‍यों में दिखाई देती है।’

Category/Sub category

Share icon

Subscribe

CPS shares spiritual wisdom to connect people to their Creator to learn the art of life management and rationally find answers to questions pertaining to life and its purpose. Subscribe to our newsletters.

Stay informed - subscribe to our newsletter.
The subscriber's email address.

leafDaily Dose of Wisdom