स्रोत: सफ़ल जीवन के सिद्धान्तिक नियमक़ुरआन में आदेश हुआ— “जब वचन दो तो उसे पूरा करो। वचन के बारे में ईश्वर के यहाँ तुमसे पूछताछ की जाएगी।” (17:34) इससे पता चला कि वचन का मामला केवल दो लोगों के बीच का मामला नहीं है। इस मामले में ईश्वर भी तीसरे पक्ष की हैसियत से शामिल है।
वचन या समझौते की अहमियत इतनी ज़्यादा है कि आदमी को चाहिए कि वह या तो किसी को वचन न दे और जब वचन दे तो उसे ज़रूर पूरा करे।वचन या समझौते की अहमियत इतनी ज़्यादा है कि आदमी को चाहिए कि वह या तो किसी को वचन न दे और जब वचन दे तो उसे ज़रूर पूरा करे। वचन न देना कोई अपराध नहीं, लेकिन वचन देने के बाद उसे पूरा न करना हक़ीक़त में अपराध है। यहाँ तक कि एक समझौते को तोड़ना इतना बड़ा अपराध है कि वह सभी इंसानी समझौतों को तोड़ने के समान है, क्योंकि समझौता तोड़ने की हर घटना समझौते के सम्मान की परंपरा को तोड़ना है। समझौते के सम्मान पर सामाजिक न्याय की पूरी व्यवस्था स्थापित है। अगर समझौते का सम्मान समाप्त हो जाए तो समाज में न्याय के वातावरण का अंत हो जाएगा।[Highlight2]