By
Maulana Wahiduddin Khan

Soulveda | July 28, 2024

यह जुलाई की एक सुंदर सुबह थी। सूरज अभी निकला नहीं था, लेकिन आसमान की विशालताओं में उसका फैलता हुआ प्रकाश बता रहा था कि वह जल्‍द ही निकलने वाला है। क्षितिज पर बादलों के टुकड़ों के पीछे से फूटने वाली सूरज की किरणें अद्भुत रंग-बिरंगें दृश्‍य प्रस्‍तुत कर रही थीं। पेड़ों की हरियाली, चिड़ियों की चहचाहट और सुबह की हवा के कोमल झोंके वातावरण की कोमलता को और बढ़ा रहे थे। मेरी ज़ुबान से अचानक निकला— ईश्वर का संसार बहुत हद तक अर्थपूर्ण है, लेकिन वह तब उस समय बहुत हद तक अर्थहीन हो जाता है, जब तक इसके साथ परलोक को शामिल न किया जाए।

संसार अत्यंत आनंदमय है, लेकिन इसका आनंद कुछ पलों से अधिक शेष नहीं रहता। संसार वास्तव में बहुत सुंदर है, लेकिन इसे देखने वाली आँख की रोशनी जल्दी चली जाती है। संसार में सम्मान और प्रसन्नता प्राप्त करना इंसान को कितना अधिक अपेक्षित है, लेकिन सांसारिक सम्मान और प्रसन्नता इंसान अभी पूरी तरह प्राप्त नहीं कर पाता कि उस पर प्रकृति का क़ानून जारी हो जाता है। संसार में वह सब कुछ जिसको इंसान चाहता है, लेकिन इस सब कुछ को प्राप्त करना इंसान के लिए संभव नहीं, यहाँ तक कि उस सौभाग्‍यशाली इंसान के लिए भी नहीं, जो प्रत्यक्ष रूप में सब कुछ प्राप्त कर चुका हो।

इंसान एक पूर्ण अस्तित्‍व है, लेकिन इसका दुखांत यह है कि वह तरह-तरह की सीमितताओं का शिकार है और बहुत-सी प्रतिकूल परिस्थितियाँ उसे घेरे हुए हैं। इंसान का जीवन पूर्ण जीवन होने के बाद भी उस समय अर्थहीन हो जाता है, जब तक उसे एक ऐसा संसार न मिले, जो हर प्रकार की सीमितताओं और प्रतिकूल परि‍स्थितियों से पवित्र हो।

ईश्वर ने यह पूर्ण और अनंत संसार स्‍वर्ग के रूप में बनाया है, लेकिन यह संसार किसी को अपने आप नहीं मिल सकता। इस आने वाले परिपूर्ण संसार का मूल्य वर्तमान अपूर्ण संसार है। जो इंसान अपने वर्तमान संसार को आने वाले संसार के लिए बलिदान कर सके, वही आने वाले स्वर्गिक संसार को पाएगा और जो इंसान इस बलिदान के लिए तैयार न हो, वह भी हालाँकि मृत्यु के बाद स्थायी संसार में प्रवेश करेगा, लेकिन उसके लिए यह स्थायी संसार पछ्तावों और निराशाओं का संसार होगा, न कि आनंद और प्रसन्नता का संसार।

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