Soulveda | June 26, 2024
क़ुरआन के अध्याय नंबर 91 में कहा गया है— “वह आदमी सफल रहा, जिसने अपने आपको पवित्र किया और वह आदमी बरबाद हो गया, जिसने अपने आपको अपवित्र किया।” वर्तमान जीवन परलोक से पहले एक परीक्षा का अवसर है। जो इंसान यहाँ से उत्तम और पवित्र आत्मा लेकर परलोक में पहुँचेगा, वह वहाँ स्वर्ग के प्रसन्नता से परिपूर्ण वातावरण में बसाया जाएगा और जो इंसान यहाँ से बुराइयों में लिपटी हुई आत्मा लेकर परलोक में जाएगा, उसे वहाँ नरक के कष्टों से परिपूर्ण वातावरण में धकेल दिया जाएगा।
वर्तमान संसार जैसे ईश्वर की नर्सरी है। नर्सरी में विभिन्न प्रकार के पौधे उगाए जाते हैं। धरती में वृद्धि की शक्ति बहुत अधिक है। अत: यहाँ तरह-तरह के पौधे उग आते हैं। माली इन सबकी जाँच करता है। जो पौधे अवांछनीय (Undesirable) पौधे हैं, उनको वह काटकर फेंक देता है और जो पौधे उसे वांछित हैं, उनको वहाँ से निकालकर ले जाता है, ताकि किसी बाग़ में उनको फलने-फूलने के लिए रोप दिया जाए।
वर्तमान संसार में इंसान के लिए एक ही समय दोनों अवसर खुले हैं। वह चाहे तो अपनी आत्मा को पवित्र करे और चाहे तो अपवित्र करता रहे। एक इंसान वह है, जो ईश्वर की प्रशंसा को मानकर उसके आगे अपने आपको झुका देता है। उसके सामने जब कोई सच आता है, तो वह बेझिझक उसे स्वीकार कर लेता है। लोगों से व्यवहार करते हुए वह सदैव हितैषी और न्याय की शैली धारण करता है। मित्रता हो या शत्रुता, प्रत्येक स्थिति में वह ईश्वर की इच्छा पर चलता है, न कि अपने मन की इच्छा पर। यह वह इंसान है, जिसने अपनी आत्मा को पवित्र किया। उसे उसका ईश्वर स्वर्ग के शोभित संसार में बसा लेगा।
दूसरा इंसान वह है, जो स्वयं अपनी बड़ाई में लगा रहता है। उसके सामने जब सच आता है तो वह उसे मानने के लिए तैयार नहीं होता। मामलों में वह विद्रोही और अन्याय की शैली धारण करता है। वह अपनी इच्छा पर चलता है, न कि ईश्वर की इच्छा पर। यही वह इंसान है, जिसने अपनी आत्मा को अपवित्र किया। ब्रह्मांड का स्वामी उसे अपने पड़ोस के लिए स्वीकार नहीं करेगा। वह उसे नरक में धकेल देगा, ताकि वह हमेशा के लिए अपने अपराध का दंड भुगतता रहे।